अब वक़्त की नजाकत देखिये, ताइवान की महिला राष्ट्रपति ने एक बार फिर चीन को धमकाया है-“भूल कर भी इधर देखने की हिमाकत मत करना.”.पर्दे के कलाकार का खेल तो…
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कालचिंतन- भाग-1 : ग़रीबी की रेखा खींचने वाले सिस्टम ने अमीरी की कोई सीमा रेखा नहीं तय की
हमारे 74 बरस के लोकतंत्र का हासिल बस इतना भर है कि- उड़ीसा में दाना मांझी को अपने पत्नी का शव कंधे पर लेकर सिसकती बेटी के साथ रात…
प्रधानसेवक यह भूल रहे हैं कि- यह देश आज भी कृषि और ऋषि प्रधान है!
@ अरविंद सिंह देश के प्रधानसेवक को यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदुस्तान की मूल पहचान-एक कृषिप्रधान देश के रूप में है और इसकी यह पहचान लाखों करोड़ों धरतीपुत्रों, खेती-किसानी…
क्या यह भारतीय ‘किसानी’ और ‘मोदीसत्ता’ के बीच सीधी टकराहट है..?
०देश के किसानों का मोदी सरकार के खिलाफ ‘दिल्ली कूच’ @ अरविंद सिंह यह भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ किसानों का ‘दिल्ली कूच’ है या इस देश की मौलिक चेतना का…
सवाल : अनपढ़ और जाहिलों को हम पढ़े लिखे चुनते रहेंगे और मूर्ख इस महान लोकतंत्र की विधायिका में कानून बनाएंगे
साहित्य और सियासत के बीच समाज कहाँ खड़ा है ? @ अरविंद सिंह यह सवाल कितना गंभीर और मौजूं है कि- हमारी सामाजिक सत्ता पर सियासत जिस प्रकार से हावी…
नए कृषि विधेयक से किसान और फुटकर व्यापारी भी उजड़ जायेगा
मोदी जी ! इतिहास ऐसी आत्मघाती गलतियों को माफ नहीं करता! राष्ट्रीय बहस @ विजय नारायण, वरिष्ठ पत्रकार. ख़बरों के पीछे छिपी खबरें अधिक खतरनाक होती हैं। ठीक वैसे ही,…
आंकलन : आत्मनिर्भरता के सपने को बेचती आत्ममुग्ध मोदी सरकार !
–अखिलेश अखिल 12 मई 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी तो बहुत से लोगों…
भारतीय किसानी में नये कार्पोरेट जमीदार पैदा करने की कोशिश, एक दिन सरकार के लिए ही भस्मासुर साबित होगी..?
@ अरविंद सिंह यह भारतीय किसानी का निजीकरण के बहाने कार्पोरेटे के हवाले करने का विधेयक है या सदियों से मौलिक और भारतीयता की मूलाधार रही किसानी को, उसके मूल…