मोदी जी ! इतिहास ऐसी आत्मघाती गलतियों को माफ नहीं करता!
राष्ट्रीय बहस @ विजय नारायण, वरिष्ठ पत्रकार.
ख़बरों के पीछे छिपी खबरें अधिक खतरनाक होती हैं। ठीक वैसे ही, जैसे एक बड़ी घटना अपने पीछे घटनाक्रमों को जन्म दे जाती है।
1991 में नरसिंह राव सरकार ने जब वैश्वीकरण को लागू किया तो वैसा ही हल्ला किया गया था, जैसा कि आज मोदी सरकार नए कृषि विधेयक पर कर रही है.1990 के दशक में वैश्वीकरण के सिलसिले में एक साथ एक लाख छोटे बड़े उद्योग बन्द हुए थे। नतीजा यह हुआ कि यह देश निर्माता की भूमिका छोड़ उपभोक्ता की भूमिका में आ गया और देश के शहर व गांवों के बाजार विदेशी माल से पट गयें. हम चीन के विरोध का नाटक करते रहे और भारतीय बाजार चीनी माल से पट गयें.मोबाइल सहित कई उद्योगों पर चीन का कब्जा है.हाल के चीनी विवाद के बाद पता चला है कि भारतीय बाजार के सोलह प्रतिशत हिस्से पर चीन का कब्जा है.चीन को न हम सीमा से हटा पा रहें हैं और ना ही अपने बाजार से.जिस किसान और फुटकर व्यापारी ने माल की संस्कृति व माल के हमलों से अपने को बचाये रखा, अब नये कृषि विधेयक ने उसके वजूद पर भी हमला कर दिया है. लगता है इस देश के औद्योगिक घरानों को पहले से ही या ऐसा कहिए कि सरकार ने औद्योगिक व पूंजीवादी घरानों से मिलीभगत कर, यह नया कदम उठाया है. जब संसद में मोदी सरकार ने नया विधेयक पेश किया, ठीक उसी समय रिलायंस औद्योगिक समूह ने एक नई कम्पनी ‘रिलायंस ट्रेडिंग कम्पनी’ की घोषण की. आज के तारीख में रिलायंस समूह दो भागों में बंट चुका है. बडे भाई मुकेश अंबानी का रिलायंस गुट देश की सबसे बड़ी कम्पनी है. मुकेश अंबानी दुनिया के चौथे नम्बर के सबसे धनी आदमी हैं. यह समूह माल जैसे बड़े बाजार के कारोबार में तो कूदा ही था, अब यह फुटकर व्यापार के क्षेत्र में भी कूद रहा है. स्वाभाविक है कि अंबानी समूह के बाद अन्य औद्योगिक समूह भी फुटकर बाजार और व्यापार के धन्धे में कूदेंगे. ऐसा भी स्पष्ट लग रहा है कि बड़े औद्योगिक घराने की आर्थिक ताकत को देखते हुए आवश्यक वस्तु अधिनिमय में छूट देकर स्टाक रखने की सीमा बढ़ा दी गयी है. बड़े औद्योगिक घरानों की फुटकर व्यापार कम्पनियां शहरों व गांवों में फुटकर व्यापार के क्षेत्र में कूदने के लिए दुकानों व गोदामों का चेन बनाएगीं, जैसा कि मालों के निर्माण में किया गया है.
इस देश के फुटकर व्यापारियों की संख्या करोड़ों में है. गांव के बाजार तो फुटकर व छोटे व्यापारियों से पटे पडे़ हैं, जैसे किसान उजड़ रहा है, और गांव उजड़ रहा है, उसी तरह गांव के बाजार भी उजडेंगें.आज गांव का मजदूर पलायन कर रहा है.उसी तरह गांवों के फुटकर दुकानदार भी उजड़ेंगे.लेकिन सवाल है कि वे कहां जायेंगे.क्या औद्योगिक घरानों की दुकाने उन्हें अपना नौकर बनाएंगीं.
वैसे तो इस देश में विगत साठ-सत्तर साल से बड़े औद्योगिक और पूँजीवादी, घरानों की राजनैतिक दलों से सांठ गांठ रही है.सरकार की आर्थिक नीतियों पर पूँजीवादी घरानों का नियंत्रण रहा है। किन्तु इस बार तो ऐसा लग रहा है कि सरकार किसान मजदूर और फुटकर व्यापारी को उजाड़ कर पूँजीवादी घरानों का पोषण कर रही है।
नए कृषि विधेयक का विरोध देश व्यापी है और स्वतः स्फूर्त है.किसी भी राजनैतिक दल इसकी अगुवाई नहीं की है.किसानों की चेतना भी अपने आप ही जागृत हुई है.किसानों को लग रहा है कि वे देश के उद्योगपतियों के गुलाम हो जायेंगे.सरकार के छलावे और पूँजीपतियों के विरोध में नारे लग रहे हैं. विगत 25 सिंतम्बर को किसान ने भारत बन्द का आवाहन किया। बन्द में देश के किसानों ने भाग लिया.लेकिन पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में काफी प्रभावशाली रहा.बन्द के समर्थन में राजनैतिक दल व जनसंगठन भी कूदे.
ऐसा भी लगा कि संसद का विगत कोरोना कालीन सत्र ही इस नये कृषि विधेयक को पारित करने के लिए बुलाया गया था। राज्यसभा में सरकार का बहुमत नहीं है, इसलिए उपसभापति ने विधेयक को ध्वनि मत से पारित करा दिया.विपक्षी सदस्यों ने इसका कड़ा प्रतिवाद किया तो सात सदस्यों को सत्र की अवधि तक निलम्बित कर दिया गया। सत्ता और पूँजीवाद के बीच गठबन्धन का यह घातक परिणाम है और भविष्य में इसकी प्रतिक्रिया और भी गंभीर होगी, लम्बे वर्ग संघर्ष की शुरूआत भी होगी.
इस नये कृषि विधेयक का सबसे खतरनाक पहलू है, देश के फुटकर व्यापार में विदेशी पूँजीनिवेश की खुली छूंट। इसका नतीजा यह होगा कि जहां आज शहरों व गांवों के बाजारों में चीनी सामान बिक रहे हैं, वहां चीन की दुकानें खुल जायेंगी.चीन ने यही काम अमेरिका में भी किया है.अमेरिका के हर शहर में चीन ने ‘1-डालर शाप’’ यानि एक डालर में कोई भी सामान खरीद के ले जाइए जैसी दुकानें खोल दी ह़ै.इन चीनी दुकानों से अमेरिका का फुटकर दुकानदार मर गया और चीन ने अमेरिका में घुसकर अमेरिका की अर्थव्यवस्था तबाह कर दिया।
चीन ने विगत 30 वर्षों यानि वैश्वीकरण के बाद जो दौलत कमायी है उसका सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका से कमाया है.अमेरिका को चेतने में तीस वर्ष लग गये। यही गलती तीस साल बाद भारत दोहरा रहा है। वैश्वीकरण की संधि पर भारत के साथ चीन ने भी हस्ताक्षर किये हैं। और भारत चीनी दुकानों को खोलने से रोक नहीं पायेगा। यह आश्चर्य की बात है कि जो सरकार रोज स्वदेशीकरण की बात कर रही है वो विदेशी निवेश को गांव और फुटकर दुकानदारों तक रास्ता नहीं बना रही है, बल्कि इनके विनाश का रास्ता बना रही है। इतिहास ऐसी आत्मघाती गलतियों को माफ नहीं करता है।