-शुभम सिंह
“इस किताब को पढ़ने में समय लगा,आदतन मैं कोई किताब दो हफ़्तों में नहीं खत्म करता लेकिन इस किताब के लिए लम्बा समय देने के लिए खुद की इच्छा थी। पाब्लो नेरुदा ने कहीं लिखा है कि–’जो किताबे आपको सोचने के लिए जितना ही ज्यादा मजबूर करती हैं,वे आपके लिए उतना ही ज्यादा मददगार साबित होती हैं।सीखने का सबसे मुश्किल तरीका होता है आरामतलबी से पढ़ना परन्तु किसी महान चिंतन की एक महान किताब विचारों के एक ऐसे जहाज की तरह होती हैं जो सच्चाई और खूबसूरती से ठसाठस लदा होता है।
यह किताब आज हर किसी को पढ़नी चाहिए क्योंकि जिस संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित होकर बापू की हत्या की गई थी,आज उसी संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित होकर देश का विधाता बनने का ख्वाब देखा जा रहा है।आप स्वयं सोचिए कि नास्तिक सावरकर ने हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा देश में रखीं,और इस्लाम में हराम मानी जाने वाली तमाम चीजों की आजमाइश करने वाले जिन्ना ने इस्लामिक स्टेट के रूप में पाकिस्तान की प्रस्तावना।अपने धार्मिक हितों की बात करने वाले ये संगठन दरअसल अपने समुदायों के उच्चवर्गो के हितों की रक्षा कर रहे थे और आजादी की लड़ाई से पूरी तरह दूर थे।
गाँधीजी के प्रति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मन में आरम्भ से ही एक दुचित्तापन रहा है।वह दोहरा चरित्र आज तक कायम है,किंतु इतिहास में झांककर देखने पर आप पाएंगे कि यह एक वृत्ति की तरह सदैव बना रहा है।गाँधीजी के प्रश्न पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक विभाजित चेतना की तरह व्यवहार करता है।
मैं चाहता हूं कि हिन्दू राष्ट्रवादी विचारधारा गाँधीजी को लेकर अपनी धारणाओं और मनसूबों को स्पष्ट करे।प्रकट में सराहना और पीठ पीछे अवमानना का यह दोहरा खेल बहुत लंबे समय से चल रहा है।या तो भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता सार्वजनिक रूप से स्वीकार करेंगे कि गाँधीजी की हत्या देश के लिए जरूरी थी और हम इसकी जिम्मेदारी लेते हैं,या वे अपने अंधसमर्थकों को गाँधीजी के अहर्निश अवमानना करने से सख्ती से रोकेंगे!यह दोनों स्वांग एक साथ नहीं चल सकते।
अशोक कुमार पांडेय जी की यह किताब शोध के योग्य है।साहित्य की व्याख्या करने वाली पुस्तकें तो बहुत है किन्तु साहित्य की धारा को बदलने वाली विचारोत्तेजक पुस्तकें एकाधिक दशक बाद आती है।और मुझे लगता है कि अशोक कुमार पांडेय जी की यह किताब ऐसी ही क्रांतिकारी कृति है…!”