‘माटी के लाल आजमगढ़ियों की तलाश में..
@ अरविंद सिंह
आजमगढ़ एक खोज…
आजमगढ़ नगर से सटे गाँव किशुनदासपुर में पैदा हुए अशोक राय, बीएचयू पढ़ने के लिए गयें. और पढ़ाई पूरा करते ही अशोक राय समाज के वंचित और बदहाल वर्ग आदिवासियों के जीवन में बदलाव के लिए झारखंड के गुमला जिले के विशुनपुर आदिवासी बहुल क्षेत्र में चलें गयें.और आदिवासियों को ही अपनी दुनिया बना लिए. विकास भारती नाम से एक स्वैच्छिक संगठन बनाकर आजमगढ़ के अशोक राय, झारखंड के अशोक भगत बन गयें और फिर आदिवासियों के ताना भगत हो गयें.
ध्येय के लिए त्याग और कर्म के प्रति समर्पण क्या होता है, वह अशोक भगत का जीवन में उतरता नज़र आया. जैसे बैरिस्टर गांधी ने गरीबों की दुर्दशा देख सादगी धारण कर ली थी। ठीक उसी प्रकार झारखंड के आदिवासियों की बदहाली देख अशोक भगत सादगी को जीवन में उतार लिया हैं। उन्होंने लगभग 33 वर्ष पहले प्रण लिया था कि जब तक आदिवासियों के तन पर कपड़ा नहीं होगा, जब तक उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार उपलब्ध नहीं होगा, जब तक वनवासी समाज की मुख्यधारा से नहीं जुड़ जाएंगे, वे वस्त्र नहीं पहनेंगे। सिर्फ धोती और गमछा धारण करेंगे।और आज भी अशोक भगत धोती में लिपटी एक अज़ीम शख्सियत हैं.
उन्होंने कला में स्नातकोत्तर की डिग्री और कानून में स्नातक की डिग्री लिया.और वर्तमान में झारखंड राज्य के लिए स्वच्छ भारत अभियान अभियान के एक नामित नेता हैं। वे संघ के भी बेहद निकट हैं. सच यह है कि झारखंड की राजनीति में भी अशोक भगत का दखल रहता है. और मोदी सरकार में भी वे एक शक्ति संपन्न व्यक्तित्व हैं
भारत सरकार ने 2015 में उन्हें सामाजिक क्षेत्र में उनके योगदान के लिए चौथा सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया.