माटी के लाल ; वीएन राय : जिसने बतौर पुलिस अधिकारी पुलिस के अमानुषिक कृत्य पर धारदार क़लम चलाया..!

माटी के लाल आज़मियों की तलाश में..

० महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के वीसी रह चुके हैं
० डीजीपी से सेवानिवृत्त और राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित
० ‘शहर में कर्फ्यू’ और ‘हाशिमपुरा 22 मई’ जैसी कृति के लिए चर्चित हुए.
@ अरविंद सिंह #बीएन_राय

बीएन राय के बारे में प्राय: ये बातें होती हैं कि- उनके जीवन में से दो उपलब्धियों को छोड़कर बाकी सभी उपलब्धियों को यदि निकाल भी दिया जाए, तो भी वह देश के जाने-माने शख्सियत बने रहेंगें. तो फिर वे दो उपलब्धियां हैं क्या ? पहला उनका लेखन और दूसरा उनके जन्म-ग्राम ‘जोकहरा की लाइब्रेरी’.
बात सबसे पहले दूसरी उपलब्धि से शुरू करते हैं. बीएन राय जिस जोकहरा गांव में पैदा हुए, वह क्षेत्र ताल-खाल और घाघरा के बाढ़ क्षेत्र में पड़ता है. देवारांचल के झूरमुटों के बीच से एक सड़क लाटघाट के करीब से जोकहरा की ओर जाती है. इस रास्ते पर आगे बढ़ने पर गांव के मुंहाने पर एक इमारत तामीर है. जिस पर लिखा है-”श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय जोकहरा”. जिसकी 27 मई 1993 में संगे बुनियाद पड़ी. इस भवन में जाने पर आप को सुधीर शर्मा मिलेगें. वे इस पुस्तकालय और वाचनालय के लाइब्रेरियन हैं. इस पुस्तकालय का इतिहास जितना समृद्ध है, उससे थोड़ा भी कम नहीं है इसके लाइब्रेरियन का इतिहास और उनका साहित्य अनुराग. सच कहें तो दोनों ही अविस्मरणीय हैं.
गोवा के एक जेल में बंद सजायाफ़्ता कैदी न० 307 का देश के बड़े और चर्चित लेखकों और लेखिकाओं से पत्राचार उनके जेल के दिनों की एक बड़ी परिघटना थी. हाजी मस्तान से लेकर मुम्बई के बड़े अन्डरवर्ल्ड के साथ रह चुके यह कैदी गोवा के जेल में सजा काट रहा था. लेकिन उसकी मूल चेतना साहित्य की थी. उसके पत्र- लेखन से प्रभावित होकर एक दिन बीएन राय उससे मिलने गोवा जेल पहुँच गयें और उसे कानूनी प्रक्रियाओं के तहत रिहा कराकर आजमगढ़ ले आए. उसके साहित्य अनुराग को देखते हुए जोकहरा लाइब्रेरी का लाइब्रेरियन बना कर इस कैदी न० 307 को साहित्य क्षेत्र में लगा दिया. तभी से यह सजा़याफ़्ता कैदी सुधीर शर्मा, जोकहरा लाइब्रेरी का लाइब्रेरियन बन गयें. ठेठ ग्राम्य अंचल के इस लाइब्रेरी की समृद्धि का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि- यहाँ पर राहुल सांकृत्यायन, हजारी प्रसाद द्विवेदी जैसे महान साहित्यकारों की ग्रंथावली सहित 25 हजार पुस्तकों और शोध सामाग्री का जखीरा है. जिसमें 15 हजार तो लघु पत्र-पत्रिकाओं का संकलन है. देश और परदेस से शोधकर्ताओं और अध्येताओं का आना सामान्य सी बात है.
इस संस्थान की निदेशक हिना देसाई हैं. जो समाज सेवा के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय योगदान देती हैं. पिछले दिनों यहाँ ‘जांघिया लोकनृत्य’ का 10 दिन का प्रशिक्षण चला जिसमें इप्टा के अध्यक्ष डॉ जैनेंद्र सिंह पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका रही. प्रशिक्षण लेने वालों में स्थानीय बच्चों के अतिरिक्त महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के एमफिल के शोधार्थी भी शामिल हुए थे. यहीं से प्रख्यात आईपीएस केपी सिंह (निवासी बलिया, जिनकी एनकाउंटर में हत्या हो गयी थी, तथा उनकी दो आईएएस बेटियों ने सुप्रीम कोर्ट तक अपने पिता की लड़ाई लड़ कर न्याय पायी) के स्मृति में ” केपी सिंह ( कृष्ण प्रताप सिंह) कथा सम्मान ” दिया जाता है.
अबतक ‘कृष्ण प्रताप कथा सम्मान’ जिन लोगों को मिला :-
2010 मैं वंदना राग को ‘ईटोपिया’ के लिए मिला
2011 में मनीषा कुलश्रेष्ठ को ‘केयर आफ स्वात घाटी’ के लिए
2012 में गीतांजलि श्री को ‘जहां हाथी रहते थे’ के लिए
2013 में उर्मिला शिरीष को ‘कुर्की और अन्य कहानियां’ के लिए
2015 में गीत चतुर्वेदी को ‘पिंक स्लिप डैडी’ के लिए
2019 में आकांक्षा पारे काशिव को ’72 धड़कन ए 73 अरमान’ को
सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का यह केन्द्र साहित्य का भी बड़ा केन्द्र है. जहाँ लगभग हर बरस यो दो बरस पर देशभर से साहित्यकारों की आमद होती रहती है और विभिन्न विषयों पर साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन बीएन राय द्वारा किया जाता है.
पिता श्री रामानंद और माँ सरस्वती की संतान के रूप में 28 नवंबर 1950 में पैदा हुए विभूति नारायण राय की पहली उपलब्धि है-उनका संवेदनशील लेखन. एक गाँव से निकलकर नौजवान का इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पहुंचना और यहीं पर उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए 1971 में अंग्रेजी साहित्य में परास्नातक करना और कुछ समय के लिए अध्यापन के साथ 1975 में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी के रूप में चयन होना. पुलिस अधिकारी का संवेदनशील होना उसके पेशे की मांग है, लेकिन पुलिस अधिकारी रहते हुए पुलिस बल की खा़मियों पर बेबाकी से क़लम चलाना, बीएन राय को बहादुर और दिलेर बना देता है. कथाकार पहले कहानियाँ लिखता है, लेकिन बीएन राय पहले पुलिस लेखक हैं जो सीधे उपन्यास लिखते हैं. वह भी सिस्टम से सवाल करते हुए- ‘शहर में कर्फ्यू’ और ‘हाशिमपुरा 22 मई’ उनकी सबसे चर्चित कृत है. ‘शहर में कर्फ्यू’ उपन्यास कृत का अंग्रेजी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. लेकिन ‘हाशिमपुरा 22मई’, 1987 में मेरठ में हुए सांप्रदायिक दंगों में लोमहर्षक अनुभवों की जीवंत दास्ताँ है, जो गाजियाबाद पुलिस अधीक्षक रहते हुए उन्होंने झेला और महसूस किया.
पुलिस महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त होने वाले बीएन राय को इंडियन पुलिस मेडल और उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति मेडल भी मिला और उनके हिंदी साहित्य अनुराग के कारण उन्हें महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा का कुलपति भी बनाया गया.

लेखन कार्य :-
विभूति नारायण राय के अब तक पाँच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं.उनके ये उपन्यास पिछले तीन-चार दशकों के परिवर्तित राजनीतिक-सामाजिक परिवेश का रचनात्मक रूपांतरण हैं. आमतौर पर लेखक कहानियाँ लिखने के बाद उपन्यास पर काम शुरू करते हैं, परंतु विभूति नारायण राय सीधे उपन्यास से आरंभ करते हैं और अपने कथ्य को अनावश्यक विस्तार से बचाते हुए सघनता प्रदान करते हैं.इसलिए आकार में संक्षिप्त होने के बावजूद दृष्टि में विस्तृत उनके उपन्यास अलग से अपनी उपस्थिति का अहसास दिलाते हैं.

सुप्रसिद्ध कथाकार ममता कालिया के शब्दों में :

“हिन्दी कथाजगत में विभूति नारायण राय की उपस्थिति आश्चर्य की तरह बनी और विस्मय की तरह छा गयी। …सबसे खास बात इस रचनाकार की यह है कि इनके सभी उपन्यास एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। ‘घर ‘ में सम्बन्धों के विखण्डन की त्रासदी है तो ‘शहर में कर्फ्यू ‘ में पुलिस आतंक के अविस्मरणीय दृश्यचित्र। ‘किस्सा लोकतंत्र ‘ राजनीति में अपराध का घालमेल रेखांकित करता है। ‘तबादला ‘ उपन्यास उत्तर आधुनिक रचना के स्तर पर खरा उतरता है क्योंकि इसमें कथातत्व का संरचनात्मक विखंडन और कथानक के तार्किक विकास का अतिक्रमण है। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में यह अपनी तरह का पहला कथा-प्रयोग रहा है। सरकारी तंत्र और राजनीतिज्ञ की सांठगांठ के कारण तबादला एक स्वाभाविक प्रक्रिया न होकर उद्योग का दर्जा पा गया है। इन रचनाओं से अलग हटकर ‘प्रेम की भूतकथा ‘ एक अद्भुत प्रेम कहानी है जिसमें प्रेमी अपनी जान पर खेलकर प्रेमिका के सम्मान की रक्षा करता है।”

विभूति नारायण राय के सभी उपन्यासों का अनुवाद अन्य भाषाओं में भी हुआ है.उनके उपन्यास ‘घर ‘ का अनुवाद पंजाबी में, ‘शहर में कर्फ्यू ‘ का उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी, बाङ्ला, मराठी, असमिया, मलयालम तथा मणिपुरी में, ‘किस्सा लोकतंत्र ‘ का पंजाबी में, ‘तबादला ‘ का उर्दू तथा अंग्रेजी में एवं ‘प्रेम की भूतकथा ‘ का कन्नड़, उर्दू तथा अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है.
सम्मान :-
इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान,
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का सम्मान,
सफदर हाशमी सम्मान,
फणीश्वरनाथ रेणु सम्मान

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