बेमिसाल : पीड़ा और प्रवीण के बीच समय ने कब एक राजनेता को गढ़ दिया.. पता ही नहीं चला!

पीड़ा और प्रवीण के बीच उम्मीद भरे दो बरस की सियासत..

दो बरस पहले के प्रवीण और आज के प्रवीण के बीच एक अग्नि पथ का सफ़र है. यह सफ़र घर फूंक तमासा देखने सरीखा है. संघर्ष को हमसफ़र बनाने वाले प्रवीण ने अपने परिस्थितियों को ही नहीं, बल्कि जन पीड़ा को महसूस किया. उसके दर्द को सीने से लगा आवाज़ दी है. उस आवाज़ को बहुतों ने महसूस किया था, लेकिन स्वर दिया तो, युवा प्रवीण के इस्पाती जज्ब़ातों ने. फिर क्या आबोहवा में गुंज सा गयां- ‘जहाँ पीड़ा- वहाँ प्रवीण’.

@ अरविंद सिंह
० आज अगर यह नहीं लिखता, नहीं बताता तो मेरे भीतर का पत्रकार और जनमुखी किरदार मुझसे बार-बार सवाल करता..कचोटता, मुझे मेरे होने पर शक करता.. इस लिए यह सच, जो दस्तावेजी है, जिसे हमारे समय ने न केवल देखा है बल्कि उसे भरपूर जीया है.क़लम ने उकेरा है, संघर्ष ने सींचा है, उसे लिखना, सच को स्वीकार और पैरोकारी करना है. उम्मीद को बनाये रखना है और संघर्ष को सिर माथे से लगाना है. संघर्ष से पैदा हुई सियासत, संघर्ष की पीड़ा और आम आदमी की दास्ताँ को महसूस करती है, उसमें अपनी पीड़ा दिखने लगती है और फिर राजपथ, संघर्ष पथ बनने लगता है.
कोई दो बरस पहले के प्रवीण और आज के प्रवीण के बीच एक अग्नि पथ का सफ़र है. यह सफ़र घर फूंक तमासा देखने सरीखा है. संघर्ष को हमसफ़र बनाने वाले प्रवीण ने अपने परिस्थितियों को ही नहीं, बल्कि जन पीड़ा को महसूस किया. उसके दर्द को सीने से लगा आवाज़ दी है. उस आवाज़ को बहुतों ने महसूस किया था, लेकिन स्वर दिया तो, युवा प्रवीण के इस्पाती जज्ब़ातों ने. फिर क्या आबोहवा में गुंज सा गयां- ‘जहाँ पीड़ा- वहाँ प्रवीण’.
तो क्या यह एक भावी राजनेता को गढ़ने और बनाने की परिस्थितियां हैं. सच तो यह है कि सड़़क के संघर्ष और निड़र, निर्भीक, मुद्दों को लेकर व्यवस्था से टकराने वाला यह युवक एक सांसद और विधायक से ज्यादा लोकप्रिय और जनमुख ‘जननेता’ बन चुका है. जो सत्ता, सिस्टम और सियासत को पिछले दो बरस में सबसे अधिक प्रभावित किया है. जिसने आजमगढ़ को यह विश्वास दिलाया कि सत्ता की ताकत से मजबूत विपक्ष का प्रतिरोध होता है. वह जनता की आवाज़ बन सकता है. उसने बहुतों की धारणा तोडने पर मजबूर कर दिया और विपक्ष की सियासत को समझने की एक नई दृष्टि दी.आजमगढ़ में कांग्रेस को नेपथ्य से लाकर प्रतिपक्ष का प्रखर और ज्वलंत आवाज़ बना दिया.
. वह विधायक कब बनेगा, नहीं बनेगा..? यह तो भविष्य तय करेगा, लेकिन प्रवीण एक राजनेता बन चुके हैं यह हमारे समय ने तय कर दिया है और यह उनकी उड़ान आजमगढ़ ही नहीं उन्हें प्रदेश और देश के मानचित्र पर भी एक दिन स्थापित जरूर करेगी.यह इस कलमकार की लेखनी ने देख और महसूस कर लिया है. आप ने क्या देखा और समझा है यह आप जानें.
प्रवीण आप यूँ ही बरस दर बरस संघर्ष पथ चलते जाएं.. वक्त ने आप के लिए कुछ और तय कर रखा है. लेकिन जहाँ भी जाएं यह सूक्ति कभी मत भूलिएगा- जहाँ पीड़ा- वहाँ प्रवीण… यही आप की सफलता और सार्थकता का पैमाना है. और यही एक भावी राजनेता की सियासी ज़मीन..
अग्नि पथ के दो बरस मुबारक हो भाई… Praveen Singh
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

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