एनपी सिंह को अमेरिकन यूनिवर्सिटी फ़ॉर ग्लोबल पीस ने दी डॉक्टरेट की मानद उपाधि

यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधि ने बताया कि एनपी सिंह को उनके सामाजिक क्षेत्र में निरन्तर सृजनात्मक कार्यों के लिए यह सम्मान दिया गया है। गौतमबुद्ध नगर में बतौर जिलाधिकारी रहते एनपी सिंह ने खनन माफिया पर कड़ी कार्रवाई की थी। जिस पर 5 मार्च 2017 को न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार के इंटरनेशनल एडिशन में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट को आधार बनाकर यूनिवर्सिटी ने एनपी सिंह के सामाजिक और प्रशासनिक जीवन का अध्ययन किया।

 

 नोएडा के पंचशील कॉलेज में आयोजित हुआ समारोह

– सामाजिक सुधार कार्यक्रमों के लिए यूनिवर्सिटी ने यह सम्मान दिया
– गौतमबुद्ध नगर, शामली, सहारनपुर और आजमगढ़ के डीएम रहे एनपी सिंह
– एनपी सिंह अभी पतंजलि के भारतीय शिक्षा परिषद में कार्यकारी अध्यक्ष हैं

नोएडा/30 जनवरी 2022 | सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और भारतीय संस्कृति समन्वित पद्धति पर आधारित भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष एनपी सिंह को ‘अमेरिकन यूनिवर्सिटी फ़ॉर ग्लोबल पीस’ ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया है। इसके लिए यूनिवर्सिटी ने रविवार को नोएडा के पंचशील कॉलेज में एक समारोह आयोजित किया। यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधि ने बताया कि एनपी सिंह को उनके सामाजिक क्षेत्र में निरन्तर सृजनात्मक कार्यों के लिए यह सम्मान दिया गया है। गौतमबुद्ध नगर में बतौर जिलाधिकारी रहते एनपी सिंह ने खनन माफिया पर कड़ी कार्रवाई की थी। जिस पर 5 मार्च 2017 को न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार के इंटरनेशनल एडिशन में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित हुई। इस रिपोर्ट को आधार बनाकर यूनिवर्सिटी ने एनपी सिंह के सामाजिक और प्रशासनिक जीवन का अध्ययन किया।

यूनिवर्सिटी के भारतीय प्रतिनिधि सीएस राव ने बताया, “गौतमबुद्ध नगर में एनपी सिंह के काम को न्यूयॉर्क टाइम्स में भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों ने पढ़ा। अमेरिकन यूनिवर्सिटी फ़ॉर ग्लोबल पीस दुनिभर के चुनिंदा लोगों को उनके सामाजिक जीवन और सृजनात्मक कार्यों के लिए सम्मानित करती है। हमने एनपी सिंह को मानद उपाधि के लिए नामांकित किया। यूनिवर्सिटी की एक्जीक्यूटिव कमेटी ने अनुमोदन किया। उनकी कई दशक लम्बी सोशल सर्विस पर यह सम्मान दिया गया है।”

इन 5 कार्यों के लिए मिला सम्मान

यूनिवर्सिटी ने एनपी सिंह के 5 सामाजिक कार्यों के लिए उन्हें चुना है। सम्मान समारोह में बताया गया कि उत्तर प्रदेश के अति पिछड़े जिलों मिर्जापुर और सोनभद्र की सीमा पर एनपी सिंह ने कोल जनजाति के लिए आईटीआई कॉलेज खोला। वर्ष 2011-12 में यह कॉलेज शुरू हुआ। उस क्षेत्र में नक्सलवाद पनप रहा था। युवकों को मुख्यधारा में लाने का यह प्रयास सफल रहा। संस्था में 168 सीट हैं। जिन्हें भारत सरकार ने मान्यता दी है। मारुति उद्योग लिमिटेड यहां से प्रशिक्षित युवाओं को नौकरी दे रही है और अब संस्था के संचालन में सहयोगी बन गई है। शामली में जिलाधिकारी रहते हुए एनपी सिंह ने कुख्यात हो चुके बावरिया समुदाय के लिए काम किया। उन्होंने वर्ष 2013 में इस समाज की 500 युवतियों, महिलाओं और परिवारों को प्रेरित किया। बड़ी संख्या में बावरिया बच्चे आईटीआई और पोलीटेक्निक कॉलेज में गए। परिणाम यह रहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में लड़कियां पढ़ रही हैं और प्रशासनिक सेवाओं में जाने के लिए तैयारी कर रही हैं। बावरिया युवक और युवतियां बैंक, प्राइमरी स्कूलों में टीचर और पुलिस में गए हैं।

सीएस राव के मुताबिक एनपी सिंह ने छत्तीसगढ़ के बालोद, रायपुर और कांकेर जिलों में आदिवासी समुदाय के लिए प्रेरणा केंद्र खोले हैं। इस अभियान का उद्देश्य आदिवासी समुदाय को मुख्यधारा में लाना है। उन्होंने अपने पैतृक जिले वाराणसी के पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के लिए स्कूल खोला। यह स्कूल प्रतिवर्ष 250 छात्राओं को निःशुल्क पढ़ाता है। एनपी सिंह जिले के दूसरे स्कूलों में पढ़ने वाले मेधावी बच्चों को निःशुल्क शिक्षा और छात्रवृत्ति दे रहे हैं। कार्यक्रम में बताया गया कि जब वह वर्ष 2000 में एसडीएम नैनीताल थे, तब नैनी झील में डेल्टा बन गए थे। झील संकट में थी। उसकी सफाई और पुनरुद्धार के लिए प्रशासन को 33 करोड़ रुपये की जरूरत थी। नवसृजित राज्य की सरकार यह पैसा देने में असमर्थ थी। एनपी सिंह ने ‘सेव लेक कैम्पेन’ चलाया। वहां झील में 27 नाले आते थे। एनपी सिंह ने एक नाले पर खुद अकेले श्रमदान शुरू किया। फिर देखादेखी यह बड़ा जनांदोलन बन गया। नवम्बर 2000 से मार्च 2001 तक महज 5 माह में जनसहयोग से ना केवल सारे नाले बल्कि झील के डेल्टा साफ हो गए। उस वक्त उत्तराखंड के अखबारों ने एनपी सिंह को ‘नक्खी ऋषि’ की संज्ञा दी। यह पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक जागरूकता की दिशा में बड़ा काम था।

अमेरिकन यूनिवर्सिटी से सम्मान मिलने पर एनपी सिंह ने कहा, “मैं इसके लिए आभारी हूं और इसे स्वीकार करता हूं। मैं इस उपाधि को उन सारे युवक, युवतियों और छात्रों को समर्पित करता हूं, जिन्होंने अपने आड़े खड़ीं सदियों पुरानी वर्जनाओं को पार किया। इन कार्यों में सहयोगी बने सैकड़ों लोग इसके हिस्सेदार हैं।” आपको बता दें कि एनपी सिंह ने उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर, शामली सहारनपुर और आजमगढ़ जैसे महत्वपूर्ण जिलों में बतौर जिलाधिकारी काम किया। इन जिलों में सांप्रदायिक सद्भाव, राष्ट्रप्रेम, महिला उत्थान और शिक्षण संस्थाओं के विकास में किए गए उनके कार्यों को याद किया जाता है।”

आसान नहीं थी शुरुआत

एनपी सिंह अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, “शुरुआती दिनों में यह काम आसान नहीं था। बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने के लिए भी गांव-गांव जाकर प्रेरित करना पड़ता था। आदिवासी इलाकों में छोटी उम्र में ही बच्चे मजदूरी करने लगते हैं और युवा मनरेगा में काम करते थे। इसी आय से उनके परिवार चल रहे थे। उनके परिजनों का कहना था कि अगर बच्चे और युवक पढ़ने जाएंगे तो परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा? इस समस्या का समाधान करने के लिए कक्षाओं का समय समायोजित किया गया। समाज कल्याण विभाग की ओर से मिलने वाली प्रतिपूर्ति छात्रवृत्ति इन लोगों के बैंक खातों में आती है। यह धनराशि शिक्षण संस्थान नहीं लेते हैं। इन्हीं परिवारों को आर्थिक सहायता के रूप में दे दी जाती है।”

शामली जिले में बावरिया समुदाय से जुड़े अपने संस्मरणों के बारे में एनपी सिंह कहते हैं, “वहां महिलाओं और लड़कियों ने बड़ा सहयोग दिया। लड़कियों ने अपने पिता और भाइयों से कहा कि हमारी इज्जत के लिए अपराध छोड़ दो। कुछ दिनों में यह पीपल मूववमेंट बन गया। आज वही लड़कियां पुलिस, टीचर और बैंकर बन गई हैं। कई लड़कियां तो आईपीएस बनकर अपने समाज को नई दिशा देना चाहती हैं। बावरिया समाज की ऐसी युवतियां दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही हैं।”

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