आंदोलन ने एक आम नौकरशाह को एक नई पहचान और मुकाम भी दिया. आंदोलन ने केजरीवाल को पैदा किया और केजरीवाल ने ‘आप’- आम आदमी पार्टी.
@ डॉ अरविंद सिंह
दिल्ली की सड़कों पर हमारे समय ने एक आंदोलन को आकार लेते हुए देखा था. यह केवल आंदोलन भर नहीं था बल्कि तत्कालीन केन्द्रीय सत्ता के खिलाफ हिन्दुस्तान की चेतना का मुखर जनाक्रोश था. जिसकी गर्भ से न जाने कितने व्यक्ति और संगठन पैदा हुए. अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का प्रादुर्भाव ही इस आंदोलन से हुआ था. वीके सिंह, किरण वेदी,मनीष सिसोदिया, संजय सिंह सरीखे लोगों को इस आंदोलन ने एक नई पहचान और मुकाम दिया.
आम भारतीय और सादगी के प्रतीक अन्ना हजारे ने रालेगण सिद्धि से जंतर-मंतर को आंदोलन का पथ बना दिया और मदांध सत्ता को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, उस आंदोलन ने एक आम नौकरशाह को एक नई पहचान और मुकाम भी दिया. आंदोलन ने केजरीवाल को पैदा किया और केजरीवाल ने ‘आप’- आम आदमी पार्टी.
यह ‘आप’ आंदोलन की पैदाइश है, जिसने दिल्ली को मथ दिया और सत्ता प्रतिष्ठान पर कब्जा कर लिया, परंपरागत राजनीति से एक वैकल्पिक राजनीति को लेकर ‘आप’ ने दिल्ली को अपनी राजधानी बना दिया. वह दिल्ली, जो देश की राजधानी है, जहाँ एक मिनी हिन्दुस्तान बसता है और भारत की केन्द्रीय सत्ता बसती है. उस दिल्ली पर लगातार विजयगाथा लिखने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी ‘आप’ ने ‘दिल्ली मॉडल’ को शासन-व्यवस्था का एक आदर्श मॉडल बनाने के लिए कार्य किया और देखते ही देखते इस मॉडल का दूसरे राज्यों में विस्तार होता गया. आप ने दिल्ली से निकलकर जिस तरह से इतने कम समय में पंजाब राज्य पर कब्जा कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. यह एक वैकल्पिक सियासत की शुरुआत भर है.
जिस तरह से पूर्ण बहुमत से ‘आप’ पंजाब में आमद की है, गोवा, गुजरात और उत्तर प्रदेश में अपने संगठन का विस्तार करते हुए एक मजबूत पहचान कायम करती जा रही है, वह समय दूर नहीं, जब वह भारतीय राजनीति में एक नये विकल्प के रूप में दिखने लगेगी, जिसका उभार उसे दिल्ली और पंजाब राज्यों की सत्ता तक पहुँचा दिया है.
आगामी समय में गुजरात के चुनाव होने वाले है, यह राज्य, भाजपा के शिखर पुरुष नरेंद्र मोदी और अमित शाह का गृहराज्य है, और उन्होंने केन्द्रीय सत्ता तक पहुँचने के लिए जिस गुजरात मॉडल की मार्केटिंग की, खुब प्रचार किया. और उसके मॉडल के भरोसे देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे. आने वाले दिनों में उसी ‘गुजरात मॉडल’ का ‘दिल्ली मॉडल’ से सीधा मुकबला होने जा रहा है. अब देखना दिलचस्प होगा कि गुजरात मॉडल और दिल्ली मॉडल में से जनता किस पर विश्वास करती है.
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