वैश्विक हलचल : पर्दे के कलाकार का खेल तो विश्व ने देख लिया अब बारी है उसका जौहर देखने की जिसे दुनियाँ “अबला” कहती है.

अब वक़्त की नजाकत देखिये, ताइवान की महिला राष्ट्रपति ने एक बार फिर चीन को धमकाया है-“भूल कर भी इधर देखने की हिमाकत मत करना.”.पर्दे के कलाकार का खेल तो विश्व ने देख लिया अब बारी है उसका जौहर देखने की जिसे दुनियाँ की बहुत बड़ी आबादी “अबला” कहती है.

– डा अशोक कुमार सिंह

कभी बिस्मार्क ने कहा था-‘वैश्विक राजनेताओं को दूर से आते घोड़े के पदचाप को सुनने की छमता होनी चाहिए’, 21वीं सदी का यह दुर्भाग्य कहा जायेगा कि ऐसे दूरदर्शी राजनेताओं से विश्व आज अछूता है जिनकी आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता हो और वे दूर से आते घोड़े के पदचाप की आहट को पहचान सकें.आज एशिया में पायलट की सीट पर चीन और को-पायलट की सीट पर रूस बैठा है, हिंद, प्रशांत से यूरोप तक अमेरिका अपना दबदबा बनाने और चीन पर नकेल डालने के लिए दोस्तों की तलाश में है और दक्षिण एशिया में भारत की स्थिति ऐसी है जहाँ से रणनीतिक संतुलन साधने में उसकी भूमिका को आज कोई भी देश नजरंदाज करने की स्थिति में नहीं है. मध्य पूर्व अपनी ही आग में झुलस रहा है. हर जंग अपने पीछे अनुभवों की एक लम्बी दास्ताँ छोड़ जाती है.यूक्रेन ने विश्व को ऊर्जा की अनिवार्यता, उसके विकल्प के प्रति सजग तो किया ही है, उन देशों को संदेश भी दिया है जो यह मंसूबा पाले हैं कि वह एक झटके में किसी को निगल लेंगे, चीन बार बार ताइवान की हवाई सीमा का अतिक्रमण कर के उसे भयभीत करने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा है लेकिन यूक्रेन के घटना क्रम ने चीन के मंसूबे पर पानी फेर दिया है. अमेरिका और नाटो मिलकर रूस को इतना थका देना चाहते हैं कि वह भीतर से टूटकर बिलबिला जाय.यही है शक्ति संतुलन का बदलता मिज़ाज़. कभी कोविड के सहारे विश्व की दवा कम्पनियों ने मानवीय मूल्यों को ताक पर जमकर चांदी कूटी और अब हथियारों के निर्यातक देश जी खोलकर कमाई कर रहे हैं.यूक्रेन जंग ने यूएनओ के ताबूत में भी आखिरी कील ठोंक दी है, अब युद्ध रुकवाने का कोई काम इसके जिम्मे नहीं बचा है.और सबसे खास लोकतांत्रिक देशों में संसद युद्ध विषयक मसलों पर निर्णय लेती है इसीलिए युद्ध का विकल्प शांति में ढूँढा जाता है जबकि अन्य देशों में तत्काल युद्ध का जबाब युद्ध से दिया जाता है, यही लोकतन्त्र का खूबसूरत और शानदार पक्ष है.भारत,युद्ध को अपनी दहलीज से क्यों दूर रखता है और उत्तर कोरिया अपनी उंगली परमाणु मिसाइलों के ट्रिगर पर क्यों रखता है यही सच लोकतन्त्र में आस्था जगाता है.आज यदि उत्तर कोरिया इस जंग में होता तो क्या अंजाम होता.? अब वक़्त की नजाकत देखिये, ताइवान की महिला राष्ट्रपति ने एक बार फिर चीन को धमकाया है-“भूल कर भी इधर देखने की हिमाकत मत करना.”.पर्दे के कलाकार का खेल तो विश्व ने देख लिया अब बारी है उसका जौहर देखने की जिसे दुनियाँ की बहुत बड़ी आबादी “अबला” कहती है.
(लेखक पूर्व वीसी, और वैदेशिक विषयों के विशेषज्ञ हैं)

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