० कुलपति का विश्वविद्यालय अभियान ने किया नागरिक अभिनन्दन
@ डॉ अरविंद सिंह – रिपोर्ट
यह मई की एक शनिवारी दुपहरी थी. आजमगढ़ नगर के शारदा चौराहे पर स्थित होटल गरूण के सभागार में आजमगढ़ के बौद्धिक और जनसरोकारी जनों का समागम हो रहा था. वातानुकूलित और सुसज्जित सभागार में करीने से कुर्सियों पर लोग बैठते जा रहे थे. सामने मंच पर एक बैनर लगा था- जिस पर बहुप्रतीक्षित आजमगढ़ विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति प्रोफेसर प्रमोद कुमार शर्मा का गंभीर चित्र के बीच इबारत लिखी थी- ‘महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय आजमगढ़ के प्रथम कुलपति का नागरिक अभिनन्दन’, और इस शानदार जलसे के का आयोजन किया था विश्वविद्यालय अभियान टीम ने, जिसकी आजमगढ़ के गाँव-गाँव से लेकर जिला मुख्यालय होतें हुए लखनऊ तक प्रतिध्वनि स्पंदित होती रही. सतत और निर्बाध संघर्ष के बाद जब आप के सपने पूरे होने लगें तो, उस खुशी को बयां शब्दों में नहीं किया जा सकता है. कमोबेश यही स्थिति इस सभागार में थी. सरस्वती पुत्रों और जनपद के एक्टिविस्टों का एक तरह से मिलन था. दुनिया की सारी समस्याओं का समाधान जिस एक हथियार के बुते निकल सकता है- वह शिक्षा ही तो है. यहाँ आने वाले लगभग सभी के मन- मस्तिष्क में था.
सभी ने एक सपना देखा था, उस सपने के लिए सड़कों पर संघर्ष किया था.बिना मौसम की परवाह किए सड़कों को पगों से मापा था, अनशन पर बैठना पड़ा था.तक जाकर ये दिन दिखे थे.
मंच पर विद्वत समाज था, इसलिए सुनने की प्रबल इच्छा भी थी. जिस मंच पर पूरब के आक्सफोर्ड इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ के शानदार अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सूबे में आपातकाल के पहले बंदी, प्रख्यात वक्ता रामाधीन सिंह हों, वह मंच समृद्ध तो ऐसे ही हो जाना था. लेकिन प्रोफेसर प्रमोद कुमार शर्मा जैसा धीर-गंभीर और कर्मवादी व्यक्तित्त्व, शिक्षाविद, कृषि विज्ञानी जब आजमगढ़ विश्वविद्यालय के संग- ए- बुनियाद का शिल्पकार बनकर आया हो, तो मंच को समृद्ध बनना ही था और बना भी. अभिनन्दन और माल्यार्पण के एक लंबे खटकरम के बाद जब संचालक के रूप में डा० ईश्वरचन्द्र त्रिपाठी ने मंच की ओर मुखातिब हुए तो मानों तमसा की लहरों में तरंगित हो सरस्वती की धार फूट पड़ी हो. तमसा की जलधारा में मानों सरस्वती की रवानी आ गयी हो.. यह पहली बार था कि आजमगढ़ अपने कुलपति को एक नागरिक अभिनन्दन में मंत्रमुग्ध हो सुन रहा था- जो सपना एक कस्बाई नगर और 60 लाख की आबादी ने अपनी खुली आँखों से देखा था, उसके एक एक रूप रंग और आकार को इसके शिल्पकार के मुख से सुनकर आह्लादित हुआ जा रहा था.- मंच जवां था- सभागार बिल्कुल शांत, सरस्वती संवाद कर रही थीं- पीके शर्मा बोल रहे थे- विश्वविद्यालय का अर्थ होता है-‘ विश्व का विद्यालय यानि वर्ल्ड का स्कूल.. यानि स्थानीय और देश ही नहीं विदेश के भी विद्यार्थी आएंगे. यह विश्वविद्यालय केवल ईंट गारे से एक शानदार इमारत और वास्तु ही नहीं होगा- यह विद्या का वैश्विक केन्द्र बनेगा. ज्ञान- विज्ञान की सभी विधाओं में शोध – अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा. जनवरी में जब पहली बार आएं तो पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कैंपस में जाकर चार्ज लिया और उसके गेस्टहाउस में रहकर
पूर्वांचल विश्वविद्यालय से सभी अभिलेखीय प्रपत्रों को पृथक कर उसे लेकर आजमगढ़ आ गयें. पीडब्ल्यूडी और निर्माण एजेंसी के बीच लगातार निर्माण की समीक्षा कर रहें हैं. हमने लक्ष्य रखा है कि अगले मार्च 2023 तक विश्वविद्यालय का कैंपस, एकडमिक ब्लॉक, एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक, गर्ल्स और ब्याज हॉस्टल सहित फैकल्टी तैयार हो जाएगी, और क्लास चलना शुरू हो जाएगा. वर्तमान परीक्षा हम करा रहे हैं.
इसके लिए नागरिक समाज, अभिभावक, शिक्षक, और मीडिया से सहयोग की अपेक्षा भी करते हैं. मीडिया को तो हम अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानते हैं, उसके माध्यम से बाहर की सूचनाएं हमारे तक आती हैं. आप के संघर्ष को नमन है, आप के सपनों को हमने महसूस किया है, कितने संघर्ष के बाद यह विश्वविद्यालय मिला है, मुख्यमंत्री जी भी आजमगढ़ विश्वविद्यालय के लिए प्राथमिकताओं में रखते हैं.’
वीसी का संबोधन चल रहा था- एक विज़नरी, मिशनरी शिल्पकार का अपने शिल्प की रुपरेखा और भविष्य की योजनाओं को लेकर. संबोधन समाप्त होते ही- सभागार में करतल ध्वनियों से गडगडाहट होने लगी.
अध्यक्षता कर रहे रामाधीन सिंह जब अपने उदबोधन के लिए उठे तो- सभी शांत हो गयें- बोले- चालीस बरस पहले मैं मेरठ में काम किया था. आज चालीस बरस बाद मेरठ से एक विद्वान और शिक्षा विद हमारे नगर में आया है. यह विश्वविद्यालय एक महान उद्देश्य के मिशन को पूरा करेगा. वैसे ही जैसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पहले वीसी सर सुन्दर लाल, मद्रास विश्वविद्यालय के रामास्वामी, कलकत्ता विश्वविद्यालय के वीसी की परिकल्पनाओं ने एक महान प्रकाशपुंज ने मूर्त रूप लिया था. इसके लिए हर युग के सवालों के लिए, उस युग के लोगों को आगे आना पड़ेगा. जैसे हमारे समय में विश्वविद्यालय अभियान ने इस सवाल को उठाया, सुजीत भूषण, राकेश गांधी, प्रवेश सिंह और विजेंद्र के रूप में. यह विश्वविद्यालय वैश्विक सवालों के जवाब देने के लिए जाना जाए, इसकी परिकल्पना और निर्माण ऐसा हो.
प्रमुख साथी के रूप में विजेंद्र सिंह बताया कि- कैसे इस विश्वविद्यालय के लिए तमाम छल छद्म को भेदकर यह विश्वविद्यालय की घोषणा करना पड़ा.
मंच पर डा० फूलचंद सिंह और प्रोफेसर शर्मा तथा विजेंद्र सिंह थे. कार्यक्रम में डा० प्रवेश सिंह, शैलेंद्र सिंह, अनिता द्विवेदी सहित आजमगढ़ मऊ के अध्यापक और गणमान्य लोग थे.