जमुरे संपादकों की भीड़ से अलग थे उदय सिन्हा जी

अखिलेश अखिल
भैया उदय सिन्हा नहीं रहे। सुबह में यही खबर भड़ास मीडिया के जरिए भाई यशवंत ने दी थी । उस दिवंगत आत्मा को मेरी श्रद्धांजलि।करोना वायरस के दंश के बीच उदय भैया का चला जाना और उनका अंतिम दर्शन भी नहीं करना, मन को बेचैन कर दिया। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
उदय भाई के साथ मै काम नहीं कर पाया। कई बार संयोग बने भी तो हालात उस लायक नहीं रहे । फोन पर अक्सर बाते होती थी। देश दुनिया पर पैनी नजर रखने वाले उदय भैया मुझे अक्सर जांचने का काम करते थे। कोई खबर मेरे सामने उछाल देते और मेरा विश्लेषण सुनते। फिर कहते कि ये सब तो ठीक है लेकिन थोड़ा अपने को बदलो। समाज और पत्रकारिता बदल गई है। फेरा में पड़ जाओगे। फिर मै कहता कि क्या किया जाए तब कहते कि तुम ठीक हो। देश और जनता की समस्यायों पर तुम्हारी बेबाकी ही सही है लेकिन आज शायद ही कोई इसे सच माने।
बिहार और छत्तीसगढ़ के बारे में अक्सर उनसे बहस होती थी। एक बार तो जब उदारीकरण को लेकर चर्चा चली तो उन्होंने मेरी बात पहले सुन ली।फिर अपनी बाते रखी। मै दंग रह गया । उनके कई तर्क मेरे लिए नए थे। जो मै जनता भी नहीं था। शांत होकर सामने वालों पर अपनी गहरी छाप छोड़ने वाले संपादकों में वे अब्बल थे।
संपादक उदय सिन्हा शांत स्वभाव के थे लेकिन काम में सख्त। उनकी शांति ही सामने वालों को ढेर कर देती थी। आज के दौर में संपादकों को जमुरा कहा जाने लगा है। बिना पेंदी का लौटा वाला संपादक तो भरे परे हैं। कई संपादक तो संस्कारहीन और व्यभिचारी भी हैं। कई लफंगे और मौका टेरियन संपादक भी है। ऐसे माहौल मै उदय सिन्हा का संपादक बने रहकर चला जाना ,बहुत कुछ सोचने को मजबुर करता है।
उदय सिन्हा हिंदी और अंग्रेजी के उम्दा पत्रकारों में शुमार रहे हैं।उनके ज्ञान, वैश्विक जानकारी और राजनीतिक खेल की समझ के साथ ही उनके संपादक कला को मै प्रणाम करता हूं और एक बार फिर उनकी दिवंगत आत्मा को प्रणाम करता हूं।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी »