◆सार्वजनिक वितरण का भ्रष्टाचार,
◆चेन सिस्टम करप्शन-पार्ट-2
@अरविंद सिंह
जी हाँ! कलेक्टर साहब, अगर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को जवाबदेह और पारदर्शी बनाना है, तो इसके साथ-साथ इसके ‘करप्शन चेन’ की अहम कड़ी ‘विपणन विभाग’ को भी ठीक और ईमानदार बनाना होगा। क्यों कि यह दोनों विभाग एक दूसरे पर आधारित और भ्रष्टाचार के हमराज़ हैं। यूं कहें कि दोनों के बीच चोली और दामन का संबंध है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालांकि ऊपर जैसे जैसे बढ़ेगें दोनों विभागों का नियंता और नियंत्रक एक ही विभाग है ‘उत्तर प्रदेश खाद्य और रसद विभाग’ होता है तथा विभाग के प्रमुख हैं ‘खाद्य आयुक्त’ । लेकिन नीचे की ओर बढ़ने पर विभागीय जिम्मेदारियां और पदीय दायित्व अलग-अलग होते जाते हैं जहाँ भ्रष्टाचार का खेल भी अलग अलग तरीकों से खेला जाता है। लेकिन ‘खेत खाय गदहा मारा जाए जोलहा’ की तर्ज पर पूरे सार्वजनिक वितरण प्रणाली का खलनायक कोटेदार ही बना दिया जाता है, उसकी दुकान भी निलंबित होती है,निरस्त भी होती है और जेल भी जाता है और चोर तो जगजाहिर तौर पर ही बनता है।इसका मतलब यह कत्तई नहीं है कि वह हरिश्चंद्र के खानदान से ताल्लुक रखता है। लेकिन उसके दर्द को भी सुने जाने की उतनी ही जरूरत है,जितना उसके भ्रष्टाचार पर उसके विरुद्ध कार्रवाई किए जाने की। इसको गंभीरता से समझने के लिए दो मंडलों क्रमशः आजमगढ़ और वाराणसी के दो जनपदों आजमगढ़ और गाजीपुर के जमीनी आकंडों का सहारा लिया जा सकता है।
एक आकंडे के अनुसार आजमगढ़ में उचित मूल्य के कुल सरकारी कोटे की दुकानों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में 2070 और नगरीय क्षेत्रों में 106 है।यानि दोनो मिलाकर इनकी संख्या 2176 है। वर्तमान में 32 दुकानें निलबिंत तथा 42 निरस्त की गयी हैं। जबकि पड़ोसी जनपद गाजीपुर में ग्रामीण क्षेत्रों में उचित मूल्य के कोटे की दुकानों की संख्या 1532 और नगरीय क्षेत्रों में 91हैं। इसमें 36 दुकानें निरस्त की गयी हैं। यानि आजमगढ़ में हर माह 2176 दुकानों पर खाद्यान्न की उठान तथा गाजीपुर में 1623 दुकानों पर उठान किया जाता है।
इस विभाग की संगठनात्मक बनावट में जिला आपूर्ति अधिकारी के सुपरविजन में हर क्षेत्रों में पूर्ति निरीक्षकों की फौज कोटेदारों का जमीनी सुपरविजन करने। आपूर्ति तथा उचित मूल्य पर नज़र रखने का पदीय दायित्व है।
अब चलते इसके प्रथम चरण में यानि विपणन विभाग की ओर,वह विभाग जो हर बरस रबी और खरीफ के फसलों के समय क्रमशः गेहूँ और चावल की सरकारी निर्धारित दरोंं पर खरीद कर बड़े बड़े गोदामों में संग्रह करता ह़ै।जिसका मंडल का सबसे बड़ा अधिकारी संभागीय खाद्य नियंत्रक (आरएफसी) होता हैं।तथा जिला स्तर पर जिला खाद्य विपणन अधिकारी होता और ब्लाक स्तर पर वरिष्ठ विपणन निरीक्षक (SMI) होता है। हर ब्लाक में खाद्य विपणन विभाग का गोदाम बना है और इन्हीं गोदामों में डिपो से चलकर हर महिने गेहूँ और चावल आपूर्ति विभाग के लिए आता है। यह चावल क्रमशः52 किलो और गेहूँ 51 किलो की सरकारी सील पैक बोरी मे आता है। जिले से जनपद भर के गोदामों में खाद्यान्न की लोडिंग हैंडलिंग तथा परिवहन के लिए विभागीय तौर पर परिवहन की व्यवस्था बाकायदा पंजीकृत ठेकेदारों के माध्यम से होती है।और नये घटनाक्रम में यह डोर स्टेप पर हर कोटे के दुकानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी विपणन विभाग की है। दोनो विभागों द्वारा करप्शन की चेन कैसे बनायी जाती है।उसकी असल तस्वीर तब देखने को मिलती है जब ब्लाक स्तर पर हर महीने कोटेदारों के राशन उठान के समय जो 52 और 51 किलो की बोरी बिना तौले दिया जाता है, कोटेदारों के अनुसार भ्रष्टाचार की शुरूआत तो वहीं पर हो जाती है।उनका कहना होता है कि प्रत्येक बोरी मे 4-5 किलो राशन कम होता है। यानि पूरे एक गांव के राशन उठान म़े 4-6 कुंतल राशन कम होता है। घटतौली की शुरुआत दुकानों पर पहुंचने से पहले ही हो जाती है। ऊपर से हर बोरी पीछे विपणन निरीक्षक 50-150 रूपये अवैध सुविधा शुल्क लेता है। यही नहीं डोर स्टेप पर राशन पहुंचाने की जिम्मेदारी विपणन विभाग की होती है लेकिन राशन परिवहन का भाड़ा भी कोटेदार को ही देना पड़ता है। अब ऐसे में एक बार के उठान में यदि 4-5कुंतल खाद्यान्न में घटतौली विपणन विभाग द्वारा ही होगी तो हम विवश होकर हर यूनिट पीछे कम राशन देगें ही। ऊपर से आपूर्ति विभाग का अपना कमीशन हर महीने देना ही है।वह प्रति दुकान 1500-2500 होता है। नोडल सुपरवाइजर के सामने खाद्यान्न वितरण का प्राविधान है। वह मौके पर रहे अथवा नहीं, लेकिन उसे भी कमीशन देना ही है।

इतने चरण के बंदरबांट के बाद एक महीने का राशन वितरण होता है।और यही निर्बाध चलता जाता है बारामासी धन्धा की तरह। समस्या तब होती है जब कोई ईमानदार अधिकारी आता है और वह ग्राउंड लेबल पर काम करने लगता है। तो भ्रष्टाचार की परते खुलने लगती हैं।
बताते चलें कि देशभर में एक साथ लागू ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013’ NFSA लोगो को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए और खाद्य तथा पोषण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार और जवाबदेह है।और उसकी यह जवाबदेही भारत की सर्वोच्च पंचायत संसद तय करती है। उचित दर पर देश के नागरिकों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार की है। जिसमें 75फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी नगरीय आबादी को कवरेज किया गया है। यानि देश की दो तिहाई आबादी को दुनिया की इस सबसे बड़ी वितरण प्रणाली (PDS) से जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना है।इस योजना के अन्तर्गत एक यूनिट में पांच किलो खाद्यान्न, जिसमें 3 रूपये चावल,2रूपये गेहूँ दिये जाने का प्राविधान है। तथा अन्त्योदय परिवार को प्रतिमाह 35 किलो खाद्यान्न दिये जाने का प्राविधान है।
अब ऐसे में इस सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पारदर्शी,जवाबदेह तथा ईमानदारी से दो तिहाई आबादी तक ले जाने के लिए बिना विपणन विभाग को दुरूस्त किए आपूर्ति विभाग के कोटेदार सही नहीं हो सकते हैं। वह ऐसे ही है जैसे किसी रोग का ऊपरी तौर पर इलाज हो और अन्दुरूनी तौर पर वह मर्ज बढ़ता ही जा रहा हो।