नये घर पुराने खेतों में पसरते जा रहे हैं..

गाँव से शीतल पी सिंह की रपट

आलू चालीस रुपये किलो पार हो गया है भारतीय देहाती महासागर में, इससे बेचैनी है । डेढ़ महीने बाद ही नई फसल बाज़ार में आएगी तब तक आलू और सेब मुक़ाबले में रहेंगे । सस्ते सेब का दाम इन्हीं बाज़ारों में पचास रुपये किलो है ।

बम्मई (मुंबई) और सूरत से लौटे मज़दूरों ने बहुत कुछ लोकल ट्राई किया है पर बात बनी नहीं । देहाती महासागर में बाज़ारों पर कैश ग़ायब होने की ज़बरदस्त मार है ।मुंबई की लोकल खुलने का बहुतों को इंतज़ार है । कोरोना का डर गाँव से ग़ायब है, अमिताभ बच्चन की भारी आवाज़ हर फ़ोन में गूंजती है पर मास्क किसी के मुँह पर नहीं है । बाज़ारों में भीड़ कम नहीं हुई ख़रीददारी भले ही कम हो गई है ।

चमरौटी से बस विंध्याचल जा रही है जहां वे मनुवादी व्यवस्था के यशोगान में अपना योगदान करेगी पर इससे गाँव में दारुण ग़रीबी में फँसी ठकुराइनें खिसियाई हुई हैं । उनके वो के पास कमाई का ज़रिया नहीं है और गाँव में मेहनत मजूरी वो कर नहीं सकते क्योंकि ठाकुर हैं, पुश्तैनी खेत ननद की शादियों में खर्च हो गये और बम्मई अभी तक बंद है ।

गाँवों में सरकारी मदद और परदेसियों के मनीआर्डर ने खपरैल को ईंट /सीमेंट से रिप्लेस कर दिया है लेकिन बढ़ती आबादी खेतों को कम करती जा रही है क्योंकि नये घर पुराने खेतों में पसरते जा रहे हैं ।

धान कटने को है पर एक नई बीमारी में पड़ गया है जिसकी दवाई अभी आई नहीं है । चालीस फ़ीसदी किसानी इससे चौपट है । वैसे यूपी में धान के दाम हज़ार रुपये से ग्यारह सौ के बीच ही हैं जो कुछ बरस पहले बाइस तेईस सौ तक थे । MSP पंजाब और हरियाणा में ही समझ आता है यहाँ के किसानों को या तो बाबा भोलेनाथ के कैसेट पसंद हैं या फिर दर अश्लील भोजपुरी!

यूपी में परधानी का चुनाव सर पर आ गया है, मुझ परदेसी तक भी कनवेसिंग पहुँची !

पता नहीं किन लोगों को गाँव लौटकर ऊर्जा मिलती है और कैसे ? मैं तो हर बार कुछ और निराशा से भर जाता हूँ !

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी »