सहजा कोई भी हो सकता है, किसी भी दल और विचारधारा में पल सकता है और उसके सपने को इसी तरह धनकुबेरों केआगे कुचला और बौना बनाया जाएगा.. ? और आप देखते रहेगें.आखिर कबतक… आप जिंदा भी हैं.. फिर कहाँ है..?
@Arvind Kumar Singh
कोई किसी पार्टी और विचार-धारा के लिए त्याग और परिश्रम भला क्यों करें. कोई जमीनी कार्यकर्ता अपनी पार्टी के प्रति वफा़दारी कैसे और कबतक निभाए. कोई अपनी जवानी के कीमती समय दल और विचारों के लिए कैसे कुर्बान करे.
आखिर ईमानदारी, वफादारी और पार्टी के प्रति अगाध आस्था का परिणाम क्या मिलेगा. क्योंकि जब जीवन में कुछ पाने की परिस्थिति बनेगी, जब कुछ लाभ मिलने की बात होगी तो वक्त आप को एक दिन सहजा…सहजानन्द बना देगा. और आप पार्टी के निर्णय को मानने के लिए अभिशप्त होगें. भाजपा ने सहजा जैसे संघर्ष से निकले कार्यकर्ता के साथ कुछ ऐसा ही सुलुक किया है. सहजा की कमी यह है कि उन्होंने धन नहीं कमाया, उसने गणेश परिक्रमा करना नहीं सिखा. उसने कार्य और व्यापार नहीं, पार्टी को मां माना, कार्यकर्ताओं के दुख- सुख को जीया. दिल में दल को बसाया, उसे सींचा. लेकिन उसने सपने में नहीं सोचा था कि आजमगढ़ जिले के जिस गोपालपुर से विधानसभा की तैयारी करने का आदेश हाईकमान ने दिया था, वहाँ नेता नहीं धन को प्राथमिकता दिया जाएगा, एक कार्यकर्ता की अहर्निश सेवा नहीं, गणेश परिक्रमा को महत्व दिया जाएगा. और एक दिन पार्टी ने प्रत्याशियों की सूची निकाली, बहुत लोग थे उसमें सहजा नहीं थे.
सहजा केवल व्यक्ति का नहीं, संघर्ष और समर्पण का नाम है. सहजा केवल त्याग का नाम नहीं है. बल्कि आंदोलन है. आंदोलनों से पैदा छात्र संघों की पैदाइश. तो क्या यूँ ही छात्र नेतृत्व की भ्रूण हत्याएं होगी. क्योंकि भाजपा ने आजमगढ़ में तो ऐसा ही किया है. वह अपने अतीत के साथियों के संघर्षों को बिसरा गयी.यह बात शायद भाजपा भूल गयी कि सपनों का मरना और मारना दोनो ही आत्मघाती होता है. यह आत्मघाती कदम शायद उसने आगे बढ़ा दिया है.
आखिर कोई काडर किसी दल के लिए संघर्ष क्यों करेगा…? सवाल मौजूं है. या नहीं, आप की अदालत में है. सहजा नाम नहीं, बल्कि आर्थिक विपन्नता से पोषित नेतृत्व है, इस देश की मुफलिसी में सपने देखने वाले नौजवान आंखें हैं. सहजा कोई भी हो सकता है, किसी भी दल और विचारधारा में पल सकता है और उसके सपने को इसी तरह धनकुबेरों केआगे कुचला और बौना बनाया जाएगा.. ? और आप देखते रहेगें.आखिर कबतक… आप जिंदा भी हैं.. फिर कहाँ है..?