०मेडिकल चूक पर आरपी डायग्नोस्टिक पैथोलॉजी को केवल चेतावनी देकर छोड़ दिया.
० झोलाछाप डाक्टर ने ली महिला की जान
मेडिकल रिपोर्ट:- / अमरजीत
स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्र, किसी भी लोकतांत्रिक और कल्याणकारी सरकार के लिए शीर्ष प्राथमिकता में होनी चाहिए. लेकिन दुर्भाग्य से योगीराज में स्वास्थ्य क्षेत्र की तस्वीर जो दिखाई और बनायी जा रही है, वह सरकार नामक संस्था की छवि और इकबाल दोनों को स्याह बना रही है.
ताजा मामला पूर्वांचल के गाजीपुर जिले का है, जहाँ स्वास्थ्य विभाग के करप्ट और घाघ सिस्टम को खुद इलाज की जरूरत है. योगी बाबा का बुलडोजर अपने स्वास्थ्य महकमे की मोटी खाल वाल अफसरों और उनके लूटतंत्र पर भी चलना चाहिए. तब जाकर स्वास्थ्य सुविधाएं आम आदमी के जीवन की रक्षा और सुरक्षा की गारंटी दे सकती हैं.
गाजीपुर स्वास्थ्य महकमे की कार्य संस्कृति किसी बीमार, जड़़वत, लाइलाज, कदाचार में आकंठ डूबे सिस्टम की बन चुकी है, जहाँ झोला छाप डाक्टर और डाइगनोस्टिक सेन्टर लोगों की जान लेने पर तुले हुएं हैं- तो सीएमओ इस गंभीर अपराध पर भी सीधे कारर्वाई करने की बजाय- जांच की भारी भरकम सरकारी पोटली बना- उस पर कागजी शेर बन- “मेडिकल अपराधियों के साथ भी अपराधी जैसा सलूक नहीं कर रहे हैं, बल्कि मेडिकल चूक के मामले में भी दरियादिली दिखा उसके खिलाफ-कागज़ में..चेतावनी.. चेतावनी खेल रहे हैं”. अब चाहे इस दुरभिसंधि से आम आदमी मरें तो मरें, साहब और उनकी टीम का आर्थिक स्वास्थ्य ठीक रहना चाहिए. हमारे समय में जो घटना गाजीपुर के स्वास्थ्य विभाग की कलई खोल कर रख दी है, उसे सरकार और शासन दोनों को जाननी चाहिए. यह घटना किसी सामान्य व्यक्ति के साथ घटित नहीं होती है, बल्कि एक पत्रकार के साथ घटित होती है, नाम है- नीरज कुमार यादव, जो गाजीपुर नगर क्षेत्र के मिरदादपुर के रहने वाले हैं, पत्नी रेखा के पेट में कुछ तकलीफ हुई तो नगर के विशेश्वरगंज मोहल्ले में स्थित आरपी डायग्नोस्टिक पैथोलॉजी में जांच कराने पहुंचे. बतौर नीरज-पत्नी की सोनोग्राफी में डायग्नोस्टिक पैथोलॉजी ने पित्ताशय में साढ़े पांच एमएम का पथरी बता दिया, और खड़े-खड़े तत्काल सलाह भी दे दिया- कि तुरंत आपरेशन कराइए. मामला बहुत सीरियस है.
लेकिन शुक्र है समय का, जो पत्रकार महोदय ने अपनी आर्थिक स्थिति के कारण तत्काल आपरेशन कराने का इरादा छोड़ दिया. 12 मार्च की सलाह को अनसुना कर 30 मई को जिला अस्पताल पहुंच गए.
जहाँ चिकित्सकों ने उनकी पत्नी को सीटी स्कैन कराने का सुझाव दिया- जिला अस्पताल में जांच में साढ़े पांच एमएम क्या, एक एमएम का भी पथरी नही निकला, सरकारी रेडियोलॉजिस्ट ने बताया कि आप के पित्ताशय में कोई पथरी नहीं है. मतलब एक ही मरीज की- एक ही जिला के दो जांच केन्द्रों आरपी डायग्नोस्टिक पैथोलॉजी और जिला अस्पताल में जमीन आसमान का अंतर. फिर क्या पत्रकार महोदय ने इसकी शिकायत की, सीएमओ ने मेडिकल बोर्ड बना कर आरपी डायग्नोस्टिक पैथोलॉजी की जांच करा दिया- जांच में पाया गया कि उक्त सेंटर द्वारा रेडियोलॉजिस्ट ने जांच नहीं किया बल्कि टेक्नीशियम ने ही जांच कर रिपोर्ट दे डाली थी, और उस पर अपनी हस्ताक्षर कर रेडियोलॉजिस्ट महोदय ने उसे आपरेशन कराने की सलाह भी दे दिया था.
सीएमओ की जांच में यह शिकायत सही पायी गयी. फिर क्या डायग्नोस्टिक पैथोलॉजी के लोग सीएमओ साहब की परिक्रमा कर अपने खिलाफ होने वाली कार्रवाई को रुकवा लिए. क्यों और कैसे यह तो सीएमओ जाने लेकिन सीएमओ ने इस गंभीर मेडिकल चूक के लिए जो सबसे बड़ा दंड दिया, उसे सुन कर भारतीय दंड विधान भी शर्मसार हो जाएगा. दंडित करने की बजाय, इस मेडिकल लापरवाही के विरुद्ध केवल– चेतावनी पत्र जारी कर दिया. वाह रे स्वास्थ्य विभाग! . तेरी लीला जग में न्यारी है. आप का कलेक्टर तो छोड़ो, सीएम और डिप्टी सीएम भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं. दूसरा प्रकरण बिरनों थाना क्षेत्र का जहाँ एक झोलाछाप डाक्टर एक डिलीवरी केस में महिला की जान ही ले ली. और जब परिजन पहुंचे तो हास्पिटल ही छोड़ कर भाग गया. तिसपर भी जिले के सीएमओ को अपने स्वास्थ्य महकमे की जमीनी हकीकत नहीं मालूम तो फिर वे सीएमओ जैसे जिम्मेदार पद पर क्यों हैं..? यह सवाल है.