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सुप्रीम कोर्ट ने पलटा 1967 का फैसला, नियमित पीठ को भेजा मामला, एएमयू में जश्न

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अलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर एएमयू इंतजामिया, छात्र, पूर्व छात्रों के साथ दुनिया की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ओर लगीं थीं। दोपहर में जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य के फैसले को पलटा और एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले को तीन सदस्यीय नियमित पीठ के लिए भेजा, वैसे ही एएमयू कैंपस में सभी एक दूसरे को बधाई देते नजर आए। मिठाई बंटी और आतिशबाजी से जमकर जश्न मनाया गया। 8 नवंबर को आने वाले एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जैसे ही 7 नवंबर को पता चली, तभी से लोगों इंतजार करने लगे। आज सुबह से ही एएमयू स्टॉफ, छात्र और पूर्व छात्र के साथ दुनिया में अमुवि से जुड़े लोग सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही को मीडिया के विभिन्न माध्यमों से देखने लगे। जैसे ही एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का फैसला पढ़ना शुरू हुआ, धड़कने कम-ज्यादा होने लगीं। एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में ‘अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य’ मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई संस्थान कानून के तहत बना है तो भी वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है। अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा या नहीं, इसका फैसला नियमित पीठ करेगी।
अल्पसंख्यक दर्जे के पक्ष में फैसले की पता लगते ही एएमयू इंतजामिया विवि के बाब-ए-सैयद द्वार एकत्र होने लगी। वहां पर लड्डू बांट कर छात्रों और एएमयू स्टाफ ने खुशी का इजहार किया। वहीं पर आतिशबाजी भी की गई। एएमयू के जनसंपर्क कार्यालय में जैसे ही फैसले की पता चली, वहां के पीआरओ और अन्य कर्मचारियों के आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे। एएमयू के छात्र, पूर्व छात्र और इंतजामिया ने फैसले को सर सैयद अहमद खां के सपने की जीत बताया। एएमयू के प्रॉक्टर प्रोफेसर वसीम अली ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को स्वागत योग्य बताने के साथ एक ऐतिहासिक निर्णय बताया है। संवैधानिक कानून विशेषज्ञ और एएमयू के पूर्व रजिस्ट्रार प्रो फैजान मुस्तफा, जिन्होंने अपने पद पर रहते हुए सुप्रीम कोर्ट में यह मामला दायर किया था, ने बताया कि यह सामान्य रूप से अल्पसंख्यक अधिकारों और विशेष रूप से एएमयू के लिए एक व्यापक जीत है। उर्दू अकादमी के पूर्व निदेशक और एएमयू के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राहत अबरार ने इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों को महत्वपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराए थे। उन्होंने कहा कि फैसले ने एएमयू समुदाय के दावों को मान्य कर दिया है, जिन्होंने हमेशा कहा था कि मामला खत्म होना चाहिए। उन संगठनों और व्यक्तियों की पहचान पर ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर निर्णय लिया गया। एएमयू टीचर्स एसोसिएशन (अमुटा) सचिव मोहम्मद ओबैद सिद्दीकी ने कहा कि फैसले ने उन बुनियादी सिद्धांतों की पुष्टि की है जिन पर एएमयू को स्थापित किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे के कायम रखने के पक्ष में तर्क दिए। पीठ में शामिल जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने विपरीत तर्क दिए। सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 में ‘अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य’ मामले में दिए अपने ही फैसले को पलट दिया। कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई संस्थान कानून के तहत बना है तो भी वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने 4-3 के बहुमत से यह आदेश दिया। इस मामले को अब तीन सदस्यीय नियमित पीठ को भेज दिया गया है। संविधान पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2006 के फैसले से उत्पन्न एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने वर्ष 2019 में इस मामले को सात जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी कर 1 फरवरी 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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