आजमगढ़ शिक्षा क्षेत्र की राह के मालवीय – गुड्डू जमाली
1 min read
०शिक्षा के क्षेत्र में यह एक बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन की नई शुरुआत है
० आजमगढ़ पब्लिक स्कूल का सालाना जलसा संपन्न
–डॉ अरविन्द सिंह
वह कभी उत्तर प्रदेश का सबसे अमीर विधायक था, अब वह उत्तर प्रदेश का सबसे अमीर एमएलसी है। कभी वह बसपा से विधानसभा में पहुंचा था, अब समाजवादी पार्टी से विधान परिषद में पहुंचा है। वह कभी आजमगढ़ से धर्मेन्द्र यादव को सांसद बनने का कारण बनता है तो करोना महामारी के समय उखड़ती सांसों को आक्सीजन देकर लोगों की ज़िन्दगी को बचाने वाला एक संजीदा मददगार भी बनता है।
वह यूपी का एक कामयाब बिजनेस मैन बनता है। जिसके बिजनेस अम्पायर का विस्तार उत्तर प्रदेश से लेकर देश के अनेक क्षेत्रों में होता चला जाता है। यूं कहें कि वह विदेश तक फैला हुआ है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
बावजूद वह इन अलग-अलग क्षेत्रों की पहचानों से बहुत संतुष्ट नहीं होता हैं। बल्कि उसकी जेहनी और मनमाफिक कार्यशैली उसे धीरे-धीरे एक अलहदा पहचान देती चली जाती है और वह शख्त समय की रेखा पर शख्सियत बनता चला जाता है। सच कहें तो वह उस नई पहचान को भीतर तक महसूसता है, जीता है। वह अपनी कार्यशैली से आजमगढ़ का मालवीय बनने की राह पर है। वह हजारों हजार बच्चों का पिता है। वह हजारों बेसहारों का अभिभावक है। वह एक ऐसे इदारे का चैयरमेन है, जो लोगों के जीवन में शिक्षा की रौशनी फैलाने के कार्य में लगा है। जिसकी संगे बुनियाद ही आजमगढ़ के शैक्षणिक पिछड़े पन को दूर करने के लिए रखी गई।
दरअसल यह एक चैरिटी है। आजमगढ़ के तालिमी मेयार के लिए। इस चैरिटी में उसे पुरसूकुन मिलता है।
जो स्वयं को किसी राजनेता से ज्यादा एक समाजसेवी कहलाना ज्यादा पसंद करता है। वह आजमगढ़ में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन का सारथी है। वह आजमगढ़ पब्लिक स्कूल की संगे बुनियाद रखने वाला बुनियाद का वह पत्थर है, जो सीधे भले ही दिखाई नहीं दे लेकिन पूरी इमारत उसी पर तामीर है।
एपीएस जैसी संस्था उस बुनियाद की बुलन्दी की कहानी है, किसी जीवित किंवदंती से ज्यादा जीवंत जातक कथा।उस शख्स का नाम है – शाह आलम… लेकिन लोग उसे ‘गुड्डू जमाली’ कहते हैं।
आजमगढ़ के जमालपुर के गुड्डू का विधायक शाह आलम और बिजनेस मैन शाह आलम बनने का सफर संघर्ष की एक पूरी गाथा है। ऐसी गाथा जिसे इस सरजमीं का हर आज़मी अपने हिस्से के ख्बाब को पूरा करने के लिए अपने मादरे वतन को छोड़कर कभी खाड़ी देश जाता है या हिन्दुस्तान के अलग-अलग महानगरों को नापता है। गुड्डू जमाली ने भी उस पीड़ा को जीया है।तब जाकर कोई ‘शाह आलम’ बनता है। पिछले दिनों आजमगढ़ पब्लिक स्कूल के सालाना जलसे में तकरीर करते हुए शाह आलम ने अपनी भावनाओं को प्रकट करना चाहा तो जैसे भावनाओं का पूरा तटबंध ही टूट सा गया, वे बच्चों और उनके अभिभावकों के बीच बेहद भावुक हो गए। बोलें – ”मैंने जीवन संघर्ष और भागादौड़ी में अपने बच्चों को बढ़ते, खेलते देख नहीं पाया, उनके बाल मनोविज्ञान को महसूस नहीं कर सका, लेकिन आज इस कैंपस में हजारों बच्चों को देखकर उन पलों की खुशियों को महसूस कर रहा हूं। मैं इन्हें देखकर उन दिनों में पहुंच गया हूं। जिसमें एक पिता अपने बच्चों को एक एक दिन बढ़ते,पढ़ते और खेलते देखता है।
ये मेरे बच्चे, कल के हिन्दुस्तान की तकदीर है। भविष्य के आईएएस आईपीएस, इंजीनियर और जज हैं, इस इदारे के लिए मैं सबकुछ करुंगा और आप से वचन लेता हूं कि जिस दिन इस संस्था से एक आना भी लेना पड़ेगा,वह दिन मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा। यहीं नहीं, जब कभी ऐसा दिन आयेगा कि इस संस्था में इसके उच्च आदर्श और मानकों की अवहेलना हो रही है, तो इसे उचित संस्था को दान कर दूंगा।”

लगभग दस हजार की भीड़ का तांता इस कैंपस में दिनभर और रात्रि तक लगा रहा। जाति पात और मजहब से ऊपर लोगों के साथ सहभोज का अद्भुत आयोजन किया गया। सभी दलीय दूरियां और वैचारिक तटबंधों को शिक्षा के इस मंदिर में टूटते देखा। सभी का आवभगत और इस्तकबाल करने के लिए संस्था के चैयरमेन शाह आलम गुड्डू जमाली और मैनेजर सीए नोमान एक पांव पर खड़े नज़र आए। इतने बड़े जलसे की तैयारी निश्चित तौर पर महिनों की कठोर परिश्रम की देन थी। निश्चित तौर पर यह आजमगढ़ में शैक्षणिक परिवर्तन की नई शुरुआत है।
