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लोकबंधु अस्पताल में लगी आग की जांच करेगी पांच सदस्यी कमेटी

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आग ने खोली थीं कई पोल; खत्म हो गई थी एनओसी
लखनऊ। लोकबंधु राजनारायण संयुक्त चिकित्सालय में आग लगने की घटना की जांच के लिए उच्च स्तरीय जांच कमेटी गठित कर दी गई है। यह कमेटी 15 दिन में रिपोर्ट देगी। यह कमेटी घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को चिन्हित करने के साथ ही भविष्य में बचाव के कदम उठाने पर भी सुझाव देगी। घटना के बाद उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा को जांच कमेटी बनाने का निर्देश दिया। दोपहर बाद प्रमुख सचिव ने कमेटी बनाते हुए उन्हें जांच का निर्देश दिया। यह जांच कमेटी आग लगने के प्राथमिक कारण, किसी भी प्रकार की लापरवाही या दोष की पहचान (यदि कोई हो तो) एवं भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं के बचाव के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने के संबंध में अपनी रिपोर्ट देगी। कमेटी का अध्यक्ष चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक डा. रतनपाल सिंह सुमन को बनाया गया है। सदस्य के रूप में विद्युत सुरक्षा निदेशालय के निदेशक, चिकित्सा शिक्षा विभाग के अपर निदेशक, अग्निशमन विभाग द्वारा नामित अधिकारी एवं चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाएं (विद्युत) के अपर निदेशक को शामिल किया गया है। जांच रिपोर्ट आने के बाद अगली कार्रवाई की जाएगी। लोकबंधु अस्पताल में लगी आग ने कई पोल खोल दिए हैं। 25 जनवरी को ही अस्पताल की फायर एनओसी समाप्त हो गई थी। ऐसे में करीब तीन महीन से बिना एनओसी अस्पताल में मरीजों का इलाज जारी था। मानकों के हिसाब से अस्पताल में आग से बचाव के संसाधन भी नहीं थे। यही वजह है कि आग लगते ही कर्मचारियों में भगदड़ मच गई। आग पर समय रहते काबू नहीं पाया गया, जिससे पूरा अस्पताल उसकी चपेट में आ गया और मरीजों की जान पर बन आई। इस लापरवाही के लिए जितना अस्पताल प्रबंधन जिम्मेदार है, उतना ही फायर ब्रिगेड भी। दरअसल, अस्पताल की ओर से वर्ष 2022 में एनओसी के लिए आवेदन किया गया था। तीन साल के लिए उन्हें एनओसी मिली थी, जो 25 जनवरी 2025 तक मान्य थी। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि एनओसी समाप्त होने के पहले ही इसके लिए आवेदन कर दिया गया था।
हालांकि, दमकल विभाग ने तीन बिंदुओं पर आपत्ति लगाकर एनओसी देने से इन्कार कर दिया। दमकल विभाग ने पब्लिक एनाउंसमेंट सिस्टम बनाने, धुआं निकलने के लिए रास्ता छोड़ने और परिसर में जगह-जगह रखे गत्तों को हटाने के बाद ही एनओसी देने पर सहमति जताई। अस्पताल ने इन कमियों को दूर करने के बाद पत्राचार किया। दमकल विभाग की टीम ने निरीक्षण और फिर कुछ और कमियां बताकर एनओसी नहीं दी। 27 फरवरी तक एनओसी मिलनी थी, जो आज तक नहीं मिली। उधर, अस्पताल में डेढ़ माह पहले आग लगने पर लोगों को कैसे बचाया जा सके, इसके लिए मॉक ड्रिल भी कर दी। मॉक ड्रिल में कर्मचारियों, अस्पताल प्रबंधन और चिकित्सकों को आग से बचाव की जानकारी भी दी गई थी। फायर ब्रिगेड ने रिहर्सल भी किया था, मगर अस्पताल में लगी आग की घटना ने मॉक ड्रिल की पोल खोल दी। आग से बचाव के उपकरण समय पर चालू न हो सके। यही नहीं, कर्मचारियों को भी उन्हें चलाने का तरीका नहीं पता था। बिना फायर एनओसी के मॉक ड्रिल ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। फायर एनओसी के लिए अस्पताल ने आॅनलाइन आवेदन करने की जगह मौखिक और पत्राचार किया। इससे उन्हें एनओसी नहीं दी गई। अब सवाल ये है कि बिना एनओसी के अस्पताल संचालित करने पर दमकल विभाग ने अस्पताल को नोटिस क्यों नहीं जारी की। फायर ब्रिगेड की टीम ने पहले भी अस्पताल का निरीक्षण किया था और हाल में दोबारा जाने वाली थी। फायर ब्रिगेड का कहना है कि धुएं से परेशानी का सामना करना पड़ा। धुआं निकलने का रास्ता नहीं था, जिससे आग ने विकराल रूप ले लिया। इस बीच बिजली काटी गई थी। हालांकि, अंधेरे में धुएं ने और मुश्किलें पैदा कीं। इससे आग पर काबू पाने में समय लगा। अस्पताल के मुख्य प्रवेश गेट के पास लोहे का बड़ा बैरियर लगाया गया है। गेट के बगल में पार्किंग है। बैरियर लगाने का मकसद वाहनों को भीतर जाने से रोकना है। हालांकि, बैरियर लगाते समय यह नहीं सोचा गया कि अगर अस्पताल में आग लगती है तो फायर ब्रिगेड के वाहन वहां से कैसे प्रवेश करेंगे। बैरियर की वजह से ही फायर ब्रिगेड के वाहन मुख्य गेट से प्रवेश नहीं कर पाए। एक वाहन तो काफी देर तक फंसा रहा। प्रशासन ने अस्पताल प्रबंधन से बैरियर लगाने को लेकर सवाल किए हैं।

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