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संस्मरण : आतिशी और कपिल मिश्र से अपना ‘रिश्ता’

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-अरविन्द मोहन ( जाने माने लेखक और पत्रकार)

संस्मरण लिखने से बचते हुए भी खुद को कुछ पुरानी बातें बताने से रोक न पाना इस विधा की ताकत को बताता है। और राजधानी दिल्ली में पढ़ाई, पत्रकारिता और राजनैतिक-सामाजिक सक्रियता के इतने लंबे दौर के बाद ऐसे संस्मरणों की बाढ़ जब तब उमड़ती है। आतिशी सिंह के मुख्यमंत्री बनते ही अपने एम ए के दिनों में उनके पिता और अपने अध्यापक विजय सिंह सर और मां तृप्ता वाही की कक्षाएं याद आती हैं। साउथ कैंपस में 1980-82 के दौर में एक तरफ प्रो. रणधीर सिंह, पार्थसरथी गुप्त, रामलखन शुक्ल, सुमित सरकार जैसे दिग्गज थे तो दूसरी ओर विजय सिंह, अरबिंदो घोष और वासुदेव उर्फ रवि चटर्जी जी नए लोग। जाहिर है हमारी नए लोगों से ज्यादा घनिष्ठता रही क्योंकि बड़ों का कद इतना बड़ा था कि गाँव से आए और हिन्दी से पढ़ाई करने की जिद वाले मेरे जैसे लोगों का संवाद बहुत कम रहा। पर रणधीर सिंह और शुक्ल जी जैसे लोग संवाद बना ही लेते थे।

तृप्ता वाही जी ने भी एकाध क्लास लिया और फिर ‘गायब’ हों गई। बहुत बाद में मालूम हुआ कि यही आतिशी मैडम पैदा हुई थीं। एम ए के बाद हिस्ट्री से साथ छूटा और पत्रकारिता तथा एक्टिविजम का क्रम चलाने लगा। एम फिल भी एक आंदोलन में जेल जाने के चलते छूटा था। तृप्ता मैम तो जहां-तहां जुलूस-प्रदर्शन में मिलीं, दिखीं पर विजय सर से एक दिन हिंदुस्तान टाइम्स बिल्डिंग के सामने सड़क पर भेंट हुई। वहीं रुककर हाल चाल लेते रहे। मेरे साथ लेडी श्रीराम कालेज वाली कुछ लड़कियों के बारे में भी पूछताछ की, जो मुझे खुद ज्यादा मालूम न था। एक ही शहर में रहते हुए बाकी कोई खोजखबर नहीं।

आप बनाते समय की शुरुआती सक्रियता अपनी भी थी, तब आतिशी से मिलने का कोई अवसर ध्यान नहीं है। पर जब प्रशांत जी, योगेंद्र, आनंद जी, अजीत झा के बाहर होने के बाद उनका कद बढ़ने लगा तो उत्सुकता हुई कि यह अजीब नाम वाली लड़की कौन है। फिर यह जानकार आनंद ही हुआ कि इसी के चलते हम तृप्ता मैम की पढ़ाई से वंचित रहे।

और यह संयोग ही है कि एक समय आप की राजनीति में आतिशी से आगे रहे और अब भाजपा में सक्रिय कपिल मिश्र भी उन्हीं दिनों पधारे और उनके जन्म में हमने अस्पताल की ड्यूटी भी की। हम एक कम्यून जैसे मकान में रहते थे जिसमें कपिल के माँ-बाप और बाद में दादा-दादी भी आ गए थे। उनके पिता पंकज जी श्रीराम शर्मा के अखंड ज्योति का सम्पादन छोड़कर आए थे और राजनैतिक कामों के साथ दिनमान में फ्रीलांसिंग करते थे। बाद में दिल्ली की मेयर बनीं उनकी मां अन्नपूर्णा जी एक बच्ची की माँ बन चुकी थी। पर दिल्ली के रंग ढंग से अपरिचित इस जोड़े ने किसी अस्पताल में रजिस्ट्रेशन नहीं कराया था।

तब सेंट स्टीफ़ेन्स कालेज के इतिहास के अध्यापक प्रेमसागर द्विवेदी जी की भानजी सेंट स्तीफेन्स अस्पताल में इंटर्न थीं। वे हमारे वकील मित्र और नागरिक अधिकार कार्यकर्त्ता राकेश शुक्ल की बहन भी थी। उनकी कोशिश से कपिल की डिलीवरी उस अस्पताल में हो पायी। फिर कपिल और उससे भी ज्यादा उसकी बड़ी बहन गार्गी के साथ व्यक्त बिताने का सुख मिला। बाद में दिल्ली रहते हुए भी यह रिश्ता राजनीति में दूर-दूर का ही रहा, निजी स्तर पर जरूर संपर्क टूटा नहीं।

आतिशी के मुख्यमंत्री बनने पर दोनों प्रसंगों ने जोर मारा तो इतना लिख मारा।
( लेखक की फेसबुक वॉल से)

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