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रूस-यूक्रेन के युद्ध में फंसे आजमगढ़ मंडल के 14 लोग

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तीन की हुई मौत, एक लापता; पीड़ित ने सुनाई आपबीती

मऊ। अच्छे वेतन की चाह में गए भारतीय युवकों को रूस-यूक्रेन युद्ध में झोंक रहा है। इसकी बानगी है आजमगढ़ निवासी कन्हैया यादव। जिनकी दिसंबर की पहले सप्ताह में मौत हो गई। इसकी पुष्टि कन्हैया के छोटे बेटे विजय ने की। कन्हैया की तरह ही आजमगढ़ और मऊ के 14 युवकों को सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के नाम पर रूस भेजा गया था। इसमें से तीन लोगों की मौत हो चुकी है। एक लापता है। बाकी वहां फंसे हैं।

कन्हैया के बेटे विजय ने बताया कि किसी व्यक्ति का फोन आया, उसने पूछा कि वह चाहते हैं तो कन्हैया यादव का शव भेज दिया जाएगा। इसके बाद मंगलवार को शव यहां पहुंचा, जिसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया गया। विजय ने बताया कि पिता को मामा विनाेद मोटी पगार और सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलाने की बात कहकर अपने साथ ले गए थे। आखिरी बार अप्रैल में पिता से बात हुई थी।

यूक्रेन युद्ध में गोली लगने से घायल हुए बृजेश यादव रूस से अक्तूबर में स्वदेश लौटे। मधुबन तहसील के धर्मपुर विशुनपुर निवासी बृजेश यादव ने अमर उजाला को आपबीती बताई। बोले, मऊ-आजमगढ़ जिले का एजेंट विनोद अपने जीजा आजमगढ़ निवासी कन्हैया यादव सहित 14 लोग के साथ रूस में फंसे थे। हम लोग फरवरी में गए थे, कन्हैया की दिसंबर के पहले सप्ताह में यूक्रेन-रूस युद्ध में मौत हो गई।

बृजेश ने बताया, फरवरी 2024 में अपने साथी सुनील, श्यामसुंदर यादव समेत सात लोगों के साथ रूस में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने गया था। हर माह दो लाख वेतन का झांसा दिया गया था। मगर वहां पहुंचने पर सपना टूट गया और हम लोगों को 15 दिन का सैन्य प्रशिक्षण देकर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में उतार दिया गया। एजेंट की धोखेबाजी से जिले के दो साथियों की असमय मौत हो गई। विनोद का अब तक सुराग नहीं लग सका है।

बृजेश यादव ने युद्ध का एक वाकया बताते हुए कहा कि हमारा ग्रुप जुलाई में एक जगह जा रहा था। इस बीच ड्रोन हमला हुआ, इसमें आजमगढ़ निवासी दीपक गंभीर रूप से घायल हो गया। उसे हम लोगों ने पानी पिलाया, मगर अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गई। दीपक का शव भिजवाने के लिए हमने रूसी अधिकारियों से बातचीत की। मगर उन्होंने हमें चुप करा दिया।

बृजेश ने बताया कि उसका एजेंट से पहले से संपर्क था। पहले मलयेशिया भेजा गया। इसके बाद सिंगापुर भेजने के लिए रुपये लिए थे। मलयेशिया से लौटने पर वह बेरोजगार था, जहां एजेंट ने संपर्क कर उसे रूस जाने की बात कही, मना करने पर उसने कहा कि नौकरी सिक्योरिटी गार्ड की है, शुरुआत में 80 से 90 हजार रुपये मिलेंगे। पहले से विश्वास होने के चलते वह उसकी बात में आ गया। वह मऊ के पांच युवाओं के साथ रूस में सिक्योरिटी गार्ड के लिए निकला। बताया कि एजेंट खुद अपने जीजा सहित सात लोगों के साथ पहले ही रूस चला गया था।

चंद्रापार निवासी सुनील यादव, कोईरियापार निवासी श्याम सुंदर और चंद्रापार निवासी विनोद के साथ दुबारी के बृजेश रूस गए थे। बृजेश ने बताया कि आजमगढ़ से कन्हैया, रामचंद्र, राकेश यादव, दीपक, धीरेंद्र, योगेंद्र, अजहरूदीन खान सहित दस लोग गए थे। इसमें वह और आजमगढ़ निवासी राकेश यादव सुरक्षित आ गए है, जबकि मऊ जिला निवासी श्याम सुंदर और सुनील की मौत हो चुकी है। इस मामले में श्याम सुंदर, सुनील के परिजनों ने एजेंट विनोद पर आरोप लगाते हुए प्रशासन से गुहार लगाई कि वह मामले की जांच कराए।

बृजेश ने बताया कि रूस पहुंचने पर पहला सप्ताह सामान्य रहा। रोज परिवार से बातचीत कर रहे थे। लेकिन एक सप्ताह बाद ट्रेन से दूसरी जगह भेज दिया गया। साथ में एक रूसी सेना का अधिकारी भी मौजूद था, जो हमें एक प्रशिक्षण केंद्र पर ले गया, जहां पर हम लोगों अलग-अलग गन, ग्रेनेड चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। वहां पर हमारी कोई नहीं सुन रहा था। प्रशिक्षण के बाद हमें चार-चार के ग्रुप में बांट कर युद्ध में उतार दिया गया। युद्ध में घोसी तहसील के चंदापार निवासी सुनील यादव की जान चली गई। बृजेश के अनुसार, सुनील, श्यामसुंदर और दो लोगों के ग्रुप को हमारे ग्रुप से दूर भेजा गया था, जहां सुनील और श्यामसुंदर की मौत की सूचना मिली। बताया कि मेरे ग्रुप का एक सदस्य बम के हमले में शहीद हो गया था। इस दौरान मेरे बांये पैर में गोली लगी थी। इसके बाद वहां पर मेरा उपचार हुआ। इसी बीच एक स्थानीय अधिकारी को अपनी आपबीती बताई। इसका नतीजा यह हुआ कि उसने दूतावास से संपर्क हो सका। आरोप लगाया कि ठीक होने पर उसे दोबारा युद्ध क्षेत्र में भेजने की कोशिश की गई मगर दूतावास के दबाव के चलते स्वदेश भेज दिया गया।

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