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बीएचयू में छात्रों का प्रदर्शन, दलित प्रोफेसर को विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारी न देने का आरोप

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वाराणसी। बीएचयू में विभागाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी कला संकाय की प्रमुख को देने के विरोध में आर्कियोलॉजी और बहुजन समाज इकाई के छात्रों ने मंगलवार को धरना शुरू कर दिया। बीएचयू कुलपति कार्यालय का घेराव कर विरोध प्रदर्शन किया। छात्रों ने कहा कि बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में विश्वविद्यालय के नियम 25 (4) (2)] के अनुसार वरिष्ठता क्रम में विभागाध्यक्ष के रूप में प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवार की नियुक्ति होनी थी। आरोप लगाया कि अनुसूचित जाति समुदाय का होने के कारण उन्हें विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्ति से वंचित कर दिया गया।

प्रो. अहिरवार की शिक्षक के रूप में 29 साल की सेवा और प्रोफेसर के पद पर 14 साल गुजारने के बावजूद उनके स्थान पर उनसे दो साल जूनियर एक ब्राह्मण जाति के प्रोफेसर जिसकी नियुक्ति अधर में लटकी है और विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी द्वारा अभी तक अनुमोदन नहीं है, उसे विभागाध्यक्ष बनाने की सुनियोजित योजना बनाई गई है ताकि अनुसूचित जाति के प्रोफेसर को विभागाध्यक्ष बनने से रोका जा सके और एक ऊंची जाति के प्रोफेसर को अनुचित पद लाभ दिया जा सके।

छात्रों ने आगे कहा कि इस साजिश का पता चलने पर प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार ने जब अपनी लिखित आपत्ति दर्ज कराई तो कला संकाय प्रमुख को आगामी आदेश तक के लिए विभागाध्यक्ष के रूप में अवैधानिक नियुक्त कर दिया गया जो पूरी तरह अवैधानिक है। विश्वविद्यालय के नियम 25(4) (2) में रोटेशन के आधार पर (बारी-बारी से) वरिष्ठता के क्रम में प्रोफेसर्स को विभागाध्यक्ष बनाने का प्रावधान है।

इसी तरह की अनियमिताओं के कारण पिछले तीन सालों में 400 से अधिक मुकदमे विश्वविद्यालय के खिलाफ हाईकोर्ट में दर्ज किए गए हैं जिसमें विश्वविद्यालय प्रशासन मात्र एक साल में ही जनता की गाढ़ी कमाई का एक करोड रुपए से अधिक खर्च कर रहा है। नियम व कायदे जिनको दरकिनार करके विभागाध्यक्ष बनाया जा रहा है। जिससे जो रोटेशन के आधार पर जिस प्रोफेसर को विभागाध्यक्ष बनाया जाना था, उसको बदल करके रजिस्ट्रार ने सैलरी के लेवल के आधार पर सीनियरिटी लिस्ट बना दी।

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