बलिया के 315 गांवों में आर्सेनिक का कहर, ढाई लाख लोग खतरे में
1 min readचर्म रोग, सांस की बीमारी और कैंसर जैसी बीमारियों से जूझ रही जनता, शुद्ध पानी की योजनाएं लापरवाही की भेंट चढ़ी
बलिया। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 315 गांवों की करीब ढाई लाख आबादी आर्सेनिक युक्त पानी के कारण गंभीर स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है। बेलहरी ब्लॉक के गंगापुर गांव के तिवारी टोला में हालात बदतर हैं, जहां 50 परिवारों के 300 लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। आर्सेनिक के दुष्प्रभाव से चर्म रोग, सांस की बीमारी और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां लोगों को घेर रही हैं।
तिवारी टोला के भृगु नाथ पांडेय (52) के शरीर पर काले चकत्ते और पाचन संबंधी समस्याएं हैं। सुरेश शाह (40) का परिवार चर्म रोग से पीड़ित है। ग्रामीण रघुनाथ पांडेय ने बताया कि उनके भाई पप्पू पांडेय और मां ज्ञानती देवी की मौत दूषित पानी के कारण हुई। भूषण पांडेय के भाई कपिल मुनि को काले चकत्ते और सांस की बीमारी ने मार डाला। सुदामा पांडेय के अनुसार, लाल ततवा का पूरा परिवार और गांव के 10 अन्य लोग आर्सेनिक के कारण असमय काल के गाल में समा चुके हैं। जाधवपुर विश्वविद्यालय की जांच में बलिया के 55 गांवों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा तय मानक से 140 गुना अधिक पाई गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पानी में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिग्रा प्रति लीटर होनी चाहिए, जबकि भारत में 0.05 मिग्रा का मानक है। जिले की 940 ग्राम पंचायतों में से 315 में भूजल इस जहर से दूषित है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, आर्सेनिक के कारण 60 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग आर्सेनिकोसिस से पीड़ित हैं।
आर्सेनिक प्रभावित गांवों में शादी-ब्याह तक प्रभावित हो रहा है। लोग इन गांवों में अपने बच्चों की शादी से कतराते हैं।
शुद्ध पानी के लिए ओवरहेड टैंक, आर्सेनिक रिमूवल प्लांट और फिल्टर लगाए गए, लेकिन रखरखाव के अभाव में खराब हो गए। हैदराबाद की टीम ने गंगा नदी में 700 करोड़ की परियोजना प्रस्तावित की, जो शुरू नहीं हुई। 2017-18 में नीर निर्मल योजना के तहत 37 परियोजनाओं के लिए विश्व बैंक से फंड मिला, लेकिन 18 परियोजनाएं समय पर शुरू नहीं हुईं और धन सरेंडर करना पड़ा। वर्तमान में 3019.32 करोड़ की तीन सतही पेयजल परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन हनुमानगंज और मनियर परियोजनाओं के लिए जमीन का इंतजाम नहीं हो सका।
सीएमओ डॉ. संजीव वर्मन ने बताया कि आर्सेनिक युक्त पानी से चर्म रोग, सांस की समस्या और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं। इसे “मीठा जहर” कहते हैं, जो शरीर को धीरे-धीरे नष्ट करता है। इलाज के अभाव में मरीज दम तोड़ रहे हैं।
प्रभावित गांवों के लोग शुद्ध पेयजल की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकारी लापरवाही ने उनकी जिंदगी को खतरे में डाल दिया है।
