असम में विदेशी बताकर लोगों को जबरन सीमा पार भेजने का आरोप, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें आरोप लगाया गया है कि असम सरकार ने विदेशी होने के संदेह में लोगों को बिना कानूनी प्रक्रिया पूरी किए जबरन हिरासत में लेना और सीमा पार भेजना शुरू कर दिया है। यह कार्रवाई बिना नागरिकता की पुष्टि या न्यायिक आदेश के की जा रही है। यह याचिका ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन ने अधिवक्ता अदील अहमद के माध्यम से दाखिल की है।
इस याचिका में 4 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए गए आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें कोर्ट ने असम सरकार को 63 घोषित विदेशियों को दो हफ्तों के भीतर उनके देश वापस भेजने को कहा था, जिनकी नागरिकता पहले से तय थी। लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस आदेश का गलत इस्तेमाल करते हुए असम सरकार ने अब एक व्यापक और अंधाधुंध अभियान शुरू कर दिया है, जिसमें उन लोगों को भी पकड़कर सीमा पार भेजा जा रहा है जिनकी नागरिकता की जांच नहीं हुई है, न ही उनके पास अपनी बात रखने का अवसर है।
गरीब और वंचित वर्ग सबसे अधिक प्रभावित
याचिका में यह भी कहा गया है कि असम के सीमावर्ती जिलों जैसे धुबरी, दक्षिण सालमारा और गोलपाड़ा में यह जबरन सीमा पार भेजने की नीति सबसे अधिक लागू की जा रही है, जिससे गरीब और हाशिए पर खड़े भारतीय नागरिकों को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। इनमें वे लोग शामिल हैं जिन्हें या तो बिना सुनवाई के विदेशी घोषित कर दिया गया है या फिर जिनके पास कानूनी मदद नहीं है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। बिना न्यायिक प्रक्रिया के किसी को भी देश से बाहर निकालना न केवल गैरकानूनी है बल्कि अमानवीय भी है।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि 4 फरवरी के आदेश के तहत किसी को भी तब तक नहीं निकाला जाए जब तक, विदेशी ट्राइब्यूनल द्वारा उसे विधिवत विदेशी घोषित न किया गया हो, उसकी नागरिकता की विदेश मंत्रालय से पुष्टि न हो और उसे अपील या समीक्षा का पूरा अवसर न मिला हो। सुप्रीम कोर्ट यह घोषित करे कि असम सरकार की ‘पुश बैक’ नीति संविधान के खिलाफ है और उसे तुरंत रोका जाए।
