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कैबिनेट के फैसले: पारिवारिक संपत्ति बंटवारे में नहीं पड़ेगा भारी शुल्क, प्रदेश में बनेंगे टीवी-मोबाइल पार्ट्स

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लखनऊ। प्रदेश सरकार ने आम जनता को बड़ी राहत देने का ऐलान किया है। अब परिवारिक संपत्ति के बंटवारे संबंधी दस्तावेजों (विभाजन विलेख) पर भारी भरकम स्टाम्प शुल्क और रजिस्ट्रेशन शुल्क नहीं लगेगा। सरकार ने इसकी अधिकतम सीमा 5,000 तय करने का प्रस्ताव किया है, जिसे कैबिनेट ने हरी झंडी दे दी। देश में बड़ी संख्या में लोग संयुक्त या अविभाजित संपत्ति के मालिक हैं। मौजूदा समय में इन संपत्तियों का बंटवारा अक्सर लिखित और पंजीकृत दस्तावेज के बजाय आपसी सहमति से किया जाता है। ऊंचे शुल्क के कारण लोग विभाजन विलेख दर्ज नहीं कराते और मामला अदालतों तक पहुंच जाता है। सरकार का मानना है कि शुल्क घटने से लोग पंजीकरण के लिए आगे आएंगे और विवाद कम होंगे। परिवारों में आपसी सौहार्द्र बढ़ेगा।
राज्य में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा देने और निवेश आकर्षित करने के लिए उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण नीति-2025 को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। इस नीति का मकसद प्रदेश को केवल इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की असेंबली सेंटर तक सीमित नहीं करना है बल्कि इलेक्ट्रानिक्स कंपोनेंट्स निर्माण के गढ़ के रूप में विकसित करना है। नीति के तहत प्रस्तावित प्रोत्साहनों और रियायतों की अवधि में लगभग 50,000 करोड़ रुपये का निवेश आने का अनुमान है। जिससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसरों में भारी वृद्धि होने की उम्मीद है। आईटी एवं इलेक्ट्रानिक्स के प्रमुख सचिव अनुराग यादव ने बताया कि अभी हम इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण ज्यादातर असेंबल करते हैं। जिसके पार्ट बाहर से आते हैं। अब हम पार्ट्स को भी यूपी में बनाएंगे। पहले 11 महंगे कंपोनेंट्स बनाने में फोकस किया जाएगा, जिनका इस्तेमाल टीवी, मोबाइल फोन, लैपटाप सहित अन्य उत्पादों में किया जाता है। इन्हें ‘ग्लोबल वैल्यू चौन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स’ के तहत यूपी में बनाया जाएगा। इनमें प्रमुख रूप से डिस्प्ले मॉड्यूल, कैमरा मिडिल, इलेक्ट्रो मैग्नेटिक कम्पोनेंट्स, बैटरी सेल 10000 एमएच तक, पॉली कार्बाेनेट से बनने वाले कवर, इनक्लोजर और इन्हें बनाने वाली मशीनरी आदि हैं।
उद्यमियों की चुनौतियां कम करके निर्यात बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश निर्यात प्रोत्साहन नीति को मंजूरी को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। नई नीति में डिजिटल तकनीक, बुनियादी विकास, वित्तीय सहायता, निर्यात ऋण, बीमा, बाजार विस्तार और प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया गया है। नीति का लक्ष्य वर्ष 2030 तक पंजीकृत निर्यातकों की संख्या में 50 प्रतिशत वृद्धि करना और निर्यात 50 अरब डालर करना है। इस मद में 882 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। मंगलवार को इसकी जानकारी देते हुए वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने बताया कि प्रदेश सरकार ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 29 अक्तूबर 2020 को उत्तर प्रदेश निर्यात नीति-2020 घोषित की थी, जो पांच वर्ष के लिए प्रभावी थी। नई निर्यात प्रोत्साहन नीति वर्ष 2030 तक प्रभावी रहेगी। नीति में उद्यमियों को अपने उत्पादों के वैश्विक प्रचार के लिए सब्सिडी के प्रावधान है। इसमें बॉयर सेलर मीट, प्रदर्शनी, प्रचार सहित तमाम गतिविधियों को शामिल किया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में आउटसोर्सिंग सेवाओं को अधिक पारदर्शी, सुरक्षित और जवाबदेह बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में हुई कैबिनेट बैठक में मंगलवार को कुल 15 प्रस्तावों को स्वीकृति दी, जिसमें कम्पनीज एक्ट-2013 के सेक्शन-8 के अंतर्गत उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम लिमिटेड के गठन को मंजूरी दे दी गई। यह एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी होगी, जिसे नान-प्रॉफिटेबल संस्था के रूप में संचालित किया जाएगा।
इसके माध्यम से अब आउटसोर्सिंग एजेंसियों का चयन सीधे विभाग नहीं करेंगे, बल्कि निगम जेम पोर्टल के माध्यम से निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया से एजेंसी का चयन करेगा। आउटसोर्स कर्मचारियों का चयन तीन वर्ष के लिए किया जाएगा। कर्मचारियों को 16 से 20 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय निर्धारित किया गया है। इस निर्णय के माध्यम से सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि प्रत्येक कर्मचारी को उसका पूरा हक मिले और उसका भविष्य सुरक्षित रहे। यह निर्णय न केवल लाखों युवाओं को बेहतर अवसर देगा, बल्कि प्रदेश में रोजगार और सुशासन का नया मॉडल भी स्थापित करेगा।
कैबिनेट ने लखनऊ व कानपुर नगर के साथ उनके आसपास के कस्बों में नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (एनसीसी) मॉडल के तहत 200 इलेक्ट्रिक बसों (ई-बस) के संचालन को मंजूरी प्रदान की है। इस पायलट प्रोजेक्ट का उद्देश्य नगरीय परिवहन को पर्यावरण-अनुकूल, व्यवस्थित, और उपभोक्ता-केंद्रित बनाना है। साथ ही, सरकारी वित्तीय बोझ को कम करते हुए निजी निवेश को प्रोत्साहित करना है। नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने बताया कि एनसीसी मॉडल नागरिकों के आवागमन की सुविधा सुनिश्चित करते हुए निजी ऑपरेटरों को अधिक व्यावसायिक स्वतंत्रता और प्रोत्साहन प्रदान करेगा, जिससे परिवहन सेवाओं की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार होगा। नगरीय परिवहन निदेशालय परियोजना इसको लागू करेगा। वर्तमान में निदेशालय द्वारा प्रदेश के 15 नगर निगमों में 743 इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जा रहा है, जिनमें से 700 बसें ग्रॉस कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (जीसीसी) मॉडल के तहत संचालित हो रही हैं। प्रोजेक्ट के तहत लखनऊ और कानपुर नगर में 10-10 मार्गों (कुल 20 मार्ग) पर 9 मीटर की वातानुकूलित (एसी) इलेक्ट्रिक बसों का संचालन होगा। अनुबंध की अवधि संचालन तिथि से 12 वर्ष तक की होगी। सरकार द्वारा चयनित मार्गों पर किसी अन्य निजी ऑपरेटर को संचालन की अनुमति नहीं दी जाएगी, जिससे ऑपरेटरों को व्यावसायिक स्थिरता और एकाधिकार प्राप्त होगा।
प्रदेश के राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में विशेष (दिव्यांग) बच्चों के लिए विशेष शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में सात मार्च 2025 को दिए गए आदेश के अनुपालन में कैबिनेट ने वर्तमान पदों में से ही 47 पद विशेष शिक्षक के रूप में बदलने को अनुमति दे दी है। इससे विभाग पर कोई अतिरिक्त भार नहीं आएगा।
माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव ने बताया कि प्रदेश के राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में वर्तमान में 692 दिव्यांग विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। जबकि इसके सापेक्ष 311 विशेष शिक्षक सेवाप्रदाता से रखे गए हैं। नियमानुसार 15 विद्यार्थी पर एक शिक्षक की आवश्यकता है। इसे देखते हुए 47 पद विशेष शिक्षक के रूप में बदलने को सहमति दे दी गई है। इसके लिए भर्ती लोक सेवा आयोग के माध्यम से लिखित परीक्षा के आधार पर की जाएगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए स्नातक स्तर पर 50 फीसदी अंकों के साथ बीएड, विशेष शिक्षा (अक्षमता, दृष्टिहीन, मूकबधिर व अधिगम अक्षमता) में डिग्री वाले अभ्यर्थियों का चयन किया जाएगा। यह शिक्षक वहां तैनात किए जाएंगे, जहां वर्तमान में दिव्यांग बच्चे बढ़ रहे हैं। निदेशक ने बताया कि विशेष शिक्षक की नियुक्ति से राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में पढ़ रहे दिव्यांग विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण समावेशी शिक्षा मिलेगी।

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