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पहलवानी के रास्ते छात्र राजनीति से सियासत में एंट्री

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कन्नौज। इत्र के लिए मशहूर कन्नौज में गंगा किनारे एक छोटा सा गांव है अड़ंगापुर। इसी गांव की गलियों से निकला नवाब सिंह यादव पहले अखाड़े में पहलवानी करता था। दंगल में आजमाए गए दांव-पेंच के हुनर से जल्द ही वह छात्र राजनीति का चर्चित चेहरा बना। इसके बाद सियासत में कदम रखते हुए अपने गंवई अंदाज से लोगों के दिलों में उतरता गया। अपने जनाधार की वजह कर वह सपा मुखिया अखिलेश यादव के करीब पहुंचा। अपने जनाधार की बदौलत ही वह यहां सपा का खास चेहरा बना। फिर जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो उसे यहां का मिनी मुख्यमंत्री कहा जाने लगा। उस दौरान उसका रसूख देखते ही बनता था। अब एक किशोरी संग हुई दरिंदगी की शिकायत ने उसकी पूरी प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया है। नवाब सिंह यादव को सियासत शुरू से ही भाई। पहलवानी का शौक रखने वाला यह चेहरा कब सियासत के दंगल में उतर गया, किसी को पता ही नहीं चला। फिर जब उसका सियासी रसूख और कद बढ़ा तो उसकी शोहरत कन्नौज जिले की सीमा को लांघ चुकी थी। अपने नाम से वह प्रदेश के कमोबेश सभी इलाकों में पहचाना जाने लगा। 1996 में शहर के प्रतिष्ठित पीएसएम पीजी कॉलेज से छात्र संघ का अध्यक्ष बनने के बाद उसने सियासत की राहों पर कदम बढ़ाने शुरू कर दिए। वर्ष 1999 में जब यहां से पहली बार मुलायम सिंह यादव लोकसभा का चुनाव लड़े तो वह युवा कार्यकर्ता की हैसियत से साथ रहा। ठीक एक साल बाद यहां हुए उपचुनाव में जब अखिलेश यादव पहली बार यहां से मैदान में उतरे तो वह साइकिल पर सवार होकर समर्थन जुटाता रहा। उसके बाद साल दर साल अपने सियासी कौशल के बूते वह सपा के वरिष्ठ नेताओं के करीब आता चला गया। इसी बीच एक बार वह वर्ष 2007 में कन्नौज सदर ब्लॉक का प्रमुख बना। 2012 में उसने अपने छोटे भाई नीलू यादव को इस कुर्सी पर बैठाया। तभी अखिलेश यादव वर्ष 2012 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उसका सियासी रुतबा और बढ़ता चला गया।
अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद यहां हुए उपचुनाव में डिंपल यादव निर्विरोध सांसद चुनी गईं। तब नवाब सिंह और उसकी टीम पर ही आरोप लगा कि उसने दूसरे उम्मीदवारों को पर्चा भरने नहीं दिया। हालांकि यह आरोप कभी साबित नहीं हो सका। डिंपल के चुनाव जीतने के बाद यहां उकने हिस्से की जिम्मेदारी उसी ने संभाली। हालांकि कभी पार्टी ने उसे लिखित रूप से डिंपल का प्रतिनिधि तो नहीं बनाया, लेकिन जनता के बीच वह इसी पदनाम से पहचाना गया। सियासत से लेकर शासन के गलियारों में उसकी तूती बोलने लगी। उसके समर्थक और प्रतिद्वंदी भी उसे उस दौर में मिनी मुख्यमंत्री से संबोधित करने लगे थे। सपा शासन के दौरान सत्ता के गलियारों में अपनी धमक रखने वाले नवाब सिंह के पार्टी से मतभेद भी शुरू हुए। इसकी शुरुआत हुई वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान। कहा जाता है कि तब नवाब सिंह यादव ने तिर्वा विधानसभा सीट से टिकट की मांग की। पार्टी ने मांग नहीं मानी। इससे खेमेबंदी शुरू हो गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में डिंपल यादव यहां से चुनाव हारीं तो नवाब सिंह यादव पर दगाबाजी का आरोप लगा। तब सपा ने पूरी तरह से दूरी बना ली थी। कभी पार्टी की बागडोर संभालने वाले नवाब सिंह को पार्टी के ही कार्यक्रम की जिम्मेदारी से दूर किया जाने लगा। इसके बावजूद नवाब सिंह यादव पार्टी का झंडा उठाकर जनहित के मुद्दे पर धरना-प्रदर्शन करता रहा। इस बीच 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जब खुद अखिलेश यादव ने यहां से दावेदारी की तो नवाब सिंह यादव ने उनके लिए प्रचार किया था। फिर चर्चा शुरू हुई कि दोनों के बीच नजदीकी बढ़ रही है। पिछले महीने 25 जुलाई को नवाब सिंह की मां का निधन हो गया तो अखिलेश यादव ने उस पर दुख जताया था। फिर यह माना जाने लगा कि दोनों के बीच जमा बर्फ पिघलने को है। अब इस प्रकरण के बाद पार्टी ने पूरी तरह से पल्ला झाड़ते हुए पार्टी का सदस्य मानने से भी इंकार कर दिया है।

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