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ढाबे पर कुत्ता मांस प्रकरणः होनी चाहिए मजिस्ट्रेटियल जांच

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संदीप अस्थाना
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यूपी के आजमगढ़ जिले के एक ढाबे पर भोजन में कुत्ता मांस परोसे जाने के कथित प्रकरण पर मजिस्ट्रेटियल जांच करायी ही जानी चाहिए। इस मामले में सोशल मीडिया पर कुत्ते का मांस परोसे जाने की बात वायरल करने वाले को जेल भेजकर प्रकरण का पटाक्षेप कतई नहीं किया जा सकता है। न ही ढाबा संचालक के कुछ शुभचिंतक सोशल मीडिया पर ढाबा संचालक का पक्ष रखकर उसे क्लीनचिट ही दे सकते हैं। आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 16 किमी दूर आजमगढ़-वाराणसी मुख्यमार्ग के किनारे स्थित एक बहुत बड़े आंगन ढाबा से जुड़ा हुआ यह मामला है। हाइवे पर यह ढाबा स्थित होने के कारण प्रतिदिन सैकड़ों मुसाफिर यहां पर भोजन-नाश्ता करते हैं। इसके अलावा आजमगढ़ शहर के लोग भी मौज-मस्ती करने के लिए यहां पर आते हैं। साथ ही स्थानीय लोग बर्थ-डे, मैरिज एनवर्सरी जैसे छोटे-बड़े मौकों पर छोटी-बड़ी पार्टियां भी करते हैं। अभी कुछ दिन पूर्व एक युवक ने अपने कुछ मित्रों को यहां पर अपने बर्थ-डे की पार्टी दी। बर्थ-डे पार्टी में आये उसके कुछ आमंत्रित मित्रों ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफाम्र्स पर यह वायरल कर दिया किया कि मटन मांगने पर उनको कुत्ते का मांस परोसा गया। यह मामला खूब वायरल हुआ। बाद में इस मामले में बर्थ-डे पार्टी देने वाला युवक सामने आया और उसने ढाबा संचालक के पक्ष में यह बयान दे दिया कि उसका यह विश्वसनीय होटल है और वह यहां अकसर आता है। उसने यह भी कहा कि उसके कुछ आमंत्रित दोस्तों ने मांस खाने की बात कही, मगर उसने यह कहकर इंकार कर दिया कि न तो वह मांस खाता है और न ही मांस खिलाएगा। इसके बाद उसके दोस्त वहां शराब पिए और मांस खाये और सोशल मीडिया पर यह वायरल कर दिया कि उन्हें कुत्ते का मांस परोसा गया, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था। यहां पर यह बात गौर करने वाली है कि जब पार्टी देने वाला युवक शाकाहारी था तो उसको यह कैसे पता चल गया कि वह मांस किस चीज का था। साथ ही ढाबा संचालक भी कटघरे में है कि उसने सार्वजनिक स्थल अपने ढाबे पर उनको शराब पीने की अनुमति कैसे दी। क्या उसके पास ढाबे पर शराब पिलाने का लाइसेंस है। यदि नहींे तो उसने भी शराब पीने की अनुमति देकर अपराध ही किया है। पार्टी देने वाले युवक के बयान के आधार पर गम्भीरपुर थाना पुलिस ने यह मामला वायरल करने वाले एक युवक को अफवाह फैलाने के अपराध में जेल भेज दिया और पुलिस उसके एक अन्य साथी की तलाश कर रही है। फिलहाल इस मामले में क्या सच्चाई है, यह तो जांच का विषय है मगर इतना तो तय है कि अब यह मामला न तो ढाबा संचालक तक सीमित रहा, न पार्टी देने वाले तक और न ही पार्टी में आमंत्रित उसके मित्रों तक। अब यह मामला पूरे समाज का हो गया है और समाज सच्चाई जानने का हकदार है। ऐसे में इस प्रकरण की मजिस्ट्रेटियल जांच होनी ही चाहिए। मजिस्ट्रेटियल जांच के कई फायदे होंगे। सबसे बड़ा फायदा यह कि समाज सच जान सकेगा। दूसरा यह कि लाखों की लागत लगाकर ढाबा खोलने वाला आंगन ढाबा का संचालक सही होने की स्थिति में एक बार फिर अपने ढाबे की विश्वसनीयता का प्रमाण पत्र पा सकेगा। साथ ही कोई भी व्यक्ति पुलिस या प्रशासन पर यह ब्लेम नहीं करेगा कि सच उठाने वाले पर कार्रवाई हो गयी। सब मिलाकर मजिस्ट्रेटियल जांच के बाद उस जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करके सारे रहस्यों से पर्दा उठा ही देना चाहिए और किसी को भी इस जांच में आपत्ति नहीं होनी चाहिए। ढाबा संचालक के कुछ पक्षधर यह तर्क दे रहे कि ढाबा संचालक दूसरे समुदाय का है और बेवजह मामले को तूल देकर कुछ लोग साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ रहे हैं। ऐसे लोगों को यह पता होना चाहिए कि कटघरे में खड़ा किये गये इस आंगन ढाबा से महज दो किलोमीटर की दूरी पर रानी की सराय कस्बे के बाहर पटेल नगर में रानी की सराय के पूर्व ब्लाक प्रमुख इसरार अहमद का ढाबा है। यहां जिले के किसी भी होटल-ढाबे से खराब भोजन व नाश्ता नहीं मिलता है तथा स्थानीय लोगों के साथ आजमगढ़ शहर से भी लोग भोजन-नाश्ता करने यहां आते हैं। इसरार अहमद का यह ढाबा आंगन ढाबे से कई वर्ष पूर्व से संचालित है और इस ढाबे पर कभी किसी ने अंगुली नहीं उठायी। ऐसी स्थिति में इस मसले को साम्प्रदायिकता के रंग में रंगना कहीं से भी उचित नहीं है।

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