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बहराइच हिंसा: पुलिस प्रशासन कदम-कदम पर रहा नाकाम, रात भर हुई आगजनी, हत्या के 26 आरोपियों को भेजा गया जेल

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बहराइच। पुलिस-प्रशासन की नाकामी से ही बहराइच में हिंसा भड़की। प्रतिमा विसर्जन के दिन सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी थे। हिंसा होने का कोई भी इनपुट नहीं था। हैरानी यह है कि सोमवार को दूसरे दिन भी सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम करने में अफसर नाकाम साबित हुए। इसलिए दूसरे दिन बवाल, तोड़फोड़ और आगजनी हुई। पूरे मामले में पुलिस का खूफिया तंंत्र फेल रहा। पूरे घटनाक्रम में एडीजी जोन से लेकर आईजी और एसपी बहराइच सवालों के घेरे में हैं। शहर में हर साल प्रतिमा विसर्जन होता है, जिसमें डीजे के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है। ऐसे में पुलिस अफसरों की जिम्मेदारी थी कि वह सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करते। क्योंकि यात्रा का रूट पहले से ही तय होता है। लेकिन, बहराइच पुलिस और प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। यही वजह है कि जब बवाल शुरू हुआ तो पुलिस बल नाकाफी साबित हुआ। उपद्रवी हावी हो गए। उन्होंने जो चाहा वही किया। गोपाल को घर के भीतर खींच ले गए। पीटा, बर्बरता की और फिर गोली भी मार दी। उसे बचाने पुलिस नहीं आ सकी। महसी के महराजगंज में दूसरे समुदाय के लोगों द्वारा मूर्ति विसर्जन के दौरान प्रतिमाओं पर पत्थरबाजी की गईं। वहीं घर में ले जाकर रेहुआ मंसूर निवासी राम गोपाल मिश्रा के साथ बर्बरता करते हुए गोली मार कर हत्या कर दी गई। जिसके बाद जिले में हिंसा फैल गई और लगातार जारी है। घटना के बाद पुलिस भी हरकत में आई है और छह नामजद समेत 10 लोगों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। साथ ही सोमवार को पुलिस ने डैमेज कंट्रोल करते हुए 26 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा है। क्षेत्र में अभी भी भारी तनाव को स्थिति है और पड़ोसी जिलों के साथ साथ कई थानों की पुलिस, पीएसी और आरएएफ के जवान मौके पर तैनात है। हरदी थाना प्रभारी हरदी कमल शंकर चतुर्वेदी ने बताया कि सोमवार को विवाद में शामिल महराजगंज निवासी मोहम्मद आवेश, तजमुल, मोहम्मद निसार, दिलशाद, रेहान, इरफान, हबीबुल्ला, अरमान, मोहम्मद नदीम, आदिल, जावेद, लारेब, असलम, रियाज अहमद, महफूज आलम, मकसूद आलम, शमी मोहम्मद, वाकर, इरशाद अहमद, इमरान, रियाज, जाहिद, मोहम्मद दानिश व सरजूपुरवा गांव निवासी मोहम्मद सलीम, अफगान, इमरान अंसारी सहित छब्बीस लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है। सघन जांच और चिन्हांकन लगातार जारी है। रविवार को पहले दिन हिंसा के बाद मुख्यमंत्री ने घटना का संज्ञान लिया था। उच्चाधिकारियों को निर्देश दिये थे। अफसरों ने दावा किया था कि अब सुरक्षा के पूरे इंतजाम कर लिए गए हैं। लेकिन सोमवार सुबह जब रामगोपाल का शव घर पहुंचा तो उसके बाद कई घंटे तक गांवों और कस्बों में तोड़फोड़, आगजनी और अराजकता होती रही। दोपहर बाद जब एडीजी एलओ ने मोर्चा संभाला तब जाकर कुछ माहौल शांत हुआ। सवाल है कि आखिर पहले दिन हिंसा के बाद दूसरे दिन लापरवाही क्यों बरती गई? पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती क्यों नहीं की गई? ऐसे तमाम सवाल पुलिस पर उठ रहे हैं।

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