आदर्श शिक्षक, सफल पिता और स्वप्न द्रष्टा शिक्षाविद बाबू हरिनारायण सिंह!
1 min read० पहली पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि।
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा,
आंख हैरान है क्या शख्स जमाने से उठा।
(डॉ अरविन्द सिंह)
आजमगढ़ के नीलकंठ में पहली बार उनसे मुलाक़ात हुई थी कोई डेढ़ दशक पहले। एक पतले दुबले काया वाले झक सफेद कुर्ता धोती और गमछे में पूरी लिपटी शख्सियत। लेकिन आवाज में ठसक किसी रौबदार ठाकुर सरीखे सुनी तो ध्यान बरबस ही आकृष्ट हो गया। नीलकंठ के स्वामी बाबू साहब यानि सीताराम सिंह ने परिचय कराया कि-‘ ये बाऊ हरिनारायण सिंह जी हैं। कटवा गहजी के प्रिंसिपल!:
सम्मान में हाथ उठे और प्रणाम किया। फिर धीरे-धीरे मुलाक़ातों का सिलसिला जारी रहा है। एक कुशल अध्यापक, एक सफल प्रिंसिपल और उससे भी ज्यादा एक कामयाब पिता के रुप में हरिनारायण सिंह ने समाज के मानस पर एक रेखा खींची है। आज उन्हीं प्रिंसिपल साहब स्मृति शेष हरिनारायण सिंह की प्रथम पुण्यतिथि है। आज उनके स्मृतियों को संजोए रखने,उनके आदर्शों और जीवन मूल्यों को जीवंत रखने, का संकल्प का दिन भी है। आज उन्हें याद करते हैं। उन्हें आज कटवा गहजी कालेज के विद्यार्थियों और अभिभावकों के बीच में खोजने की कोशिश करते हैं। उन्हें उन हवाओं में महसूस करते हैं जो शंकर जी विद्या मंदिर के प्रांगण से होकर बहती है। उन्हें एक बार फिर नीलकंठ के बैठकों और ठहाकों में खोजने की कोशिश करते हैं। शासन हम सबकी यादों के सुनहरे पन्नों में एक मधुर मुस्कान लिए एक बार फिर मुस्कुराते हुए प्रिंसिपल साहब दिख जाएं।
कहते हैं कि व्यक्ति दुनियॉं से रुख़्सत होने के बाद अपने पीछे अपना अतीत छोड़ चला जाता है। लीक पर चलने की बजाय लीक बनाने वाले स्मृतिशेष बाबू हरिनारायण सिंह को आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर उनके पैतृक गांव शंभूपुर पूरा में भावभीनी श्रद्धांजलि दी जा रही।
ग्राम शंभूपुर पूरा निवासी आदर्श शिक्षक स्वर्गीय बाबू सरजू सिंह के पुत्र के रूप में हरिनारायण सिंह का जन्म 25 मई 1935 को हुआ था। वे बचपन से ही अनुशासित और मेधावी विद्यार्थी थे। उनकी प्राथमिक शिक्षा अपने ही गांव में स्थित प्राइमरी पाठशाला से हुई थी। माध्यमिक शिक्षा उनके गांव से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित इंटर कॉलेज खोरासन में हुई और उच्च शिक्षा जनपद के प्रतिष्ठित शिब्ली नेशनल पीजी कॉलेज आजमगढ़ से हुई थी। अपने पिता को आदर्श मानने वाले स्वर्गीय बाबू हरिनारायण सिंह का अपने पिता की ही तरह आदर्श शिक्षक बनने का सपना था। वर्ष 1959 में उद्योग विद्यालय इंटर कॉलेज कोयलसा, आजमगढ़ में नागरिक शास्त्र विषय में प्रवक्ता के रूप में नियुक्त होकर उन्होंने अपने सपने को साकार रूप दिया।
खॉंटी ईमानदार, नैतिक और उच्च चरित्र के धनी बाबू हरिनारायण सिंह ने अपने आचरण व्यवहार और अध्यापन से उस विद्यालय में ही नहीं बल्कि कोयलसा की पूरी देहात में कुछ समय में ही प्रसिद्ध हो गए। अपने पूज्य पिताजी एवं देहात के बुजुर्गों की इच्छा के अनुरूप बाबू हरिनारायण सिंह उद्योग विद्यालय इंटर कॉलेज से त्यागपत्र देकर वर्ष 1968 में अपने गांव के समीप श्री शंकर जी इंटर कॉलेज कटवा गहजी, आजमगढ़ में प्रधानाचार्य के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। इस नितांत पिछड़े अंचल में शिक्षा की अलख जगाने के लिए उन्होंने निरंतर 30 वर्षों तक कठिन साधना किया। परिणामत: उत्कृष्ट शिक्षा, कड़ी परीक्षा और सख्त अनुशासन के लिए श्री शंकर जी इंटर कॉलेज कटवा गहजी, आजमगढ़ पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध हुआ। वे छात्रों के गुरु और अभिभावक दोनों थे। उनका मानना था कि छात्र जब अपने घर से पढ़ने के लिए निकल पड़ता है और विद्यालय से पढ़कर जब तक वह अपने घर नहीं पहुंच जाता है तब तक वह मेरी गार्जियनशिप में होता है। यही कारण था उनके वैचारिक विरोधी भी अपने बच्चों को उनके सानिध्य में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते थे।
बाबू हरिनारायण सिंह ने शिक्षा के साथ-साथ शिक्षक हितों के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया। अनवरत 12 वर्षों तक माध्यमिक शिक्षक संघ का प्रांतीय अध्यक्ष रहते हुए शिक्षक राजनीति को एक नया आयाम दिया। शिक्षक हितों के लिए सत्ता से टकराने में वे जरा भी नहीं हिचकते थे।
वर्ष 1997 में अवकाश प्राप्त करने के उपरांत उन्होंने प्रांतीय स्तर पर “अवकाश प्राप्त माध्यमिक शिक्षक कल्याण एसोसिएशन” की स्थापना किया,जिसके माध्यम से अवकाश प्राप्त शिक्षकों के हक और हुकुम की लड़ाई लड़ते रहे ।यही कारण था कि शिक्षक संगठनों ने उन्हें अंतिम सांस तक अपना संरक्षक माना । अपने वसूलों और सिद्धांतों से कभी भी समझौता न करने वाले बाबू हरिनारायण सिंह ने अपने जीवन में वैयक्तिक एवं सामाजिक रिश्तों को बहुत सहेज कर रखा। समाज में रहकर उन्होंने समाज के उत्थान के लिए जो नि:स्वार्थ योगदान दिया था वह उनकी अंतिम यात्रा में उमड़े जनसैलाब में स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा था।
परिवार जिसका मंदिर था,स्नेह जिसकी भक्ति थी, परिश्रम जिसका कर्तव्य था, परमार्थ जिसकी भक्ति थी, ऐसी पुण्यआत्मा की शांति के लिए शिक्षक संगठनों एवं ग्राम वासियों ने भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित किया।
एक सफ़ल शिक्षक ही नहीं, बल्कि आदर्श पिता भी थे
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स्वर्गीय हरिनारायण सिंह के चार पुत्र और तीन पुत्रियां हैं।ज्येष्ठ पुत्र श्री ज्ञान प्रकाश सिंह त्रिपुर मर्दन औद्योगिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय पड़री बासथान, आजमगढ़ में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत हैं। द्वितीय पुत्र डॉ. अशोक कुमार सिंह पेशे से चिकित्सक और श्री शंकर जी इंटर कॉलेज कटवा गहजी, आजमगढ़ के प्रबंधक हैं। तृतीय पुत्र डॉ. अरुण कुमार सिंह वर्तमान समय में जनपद चित्रकूट के पुलिस अधीक्षक हैं। कनिष्ठ पुत्र डॉ. दिनेश कुमार सिंह गांधी शताब्दी स्मारक स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोयलसा, आजमगढ़ में राजनीतिशास्त्र विषय में प्राध्यापक हैं।
प्रथम पुत्री श्रीमती गिरिजा सिंह का विवाह अयोध्या जनपद स्थित इंटर कॉलेज के सेवानिवृत शिक्षक श्री हनुमान प्रसाद सिंह से हुआ है। द्वितीय पुत्री श्रीमती मंजू सिंह का विवाह अंबेडकर नगर जनपद में श्री जयप्रकाश सिंह से हुआ है। तृतीय पुत्री श्रीमती इंदु सिंह का विवाह जनपद अंबेडकर नगर में पेशे से चिकित्सा डॉ. बृजेश कुमार सिंह के साथ हुआ है।
बाबू हरिनारायण सिंह अपने पीछे एक भरा-पुरा परिवार छोड़कर गोलोक वासी हुए हैं! उनकी संताने उनके पदचिन्हों पर चलकर उनके यश, कीर्ति और सम्मान को बढ़ाने का निरंतर प्रयत्न कर रही हैं।