इस हिना का रंग यूं हीं चटक नहीं हुआ…
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उसे तो वक्त की रेत पर तपना पड़ा है …!
– डॉ अरविन्द सिंह। महिला दिवस पर विशेष।
पहली बार जिस हिना से मिला था, वह कोई और थीं, आज की हिना देसाई कोई और हैं। दरअसल इस ‘थीं और हैं’ के बीच दशकों लंबा फासला है। तब से अब तक गंगा-यमुना की अतल जलराशि में अथाह जल प्रवाहित हो चुका है। तब का पैदा हुआ बच्चा आज किशोर वय का हो चुका है। कई सरकारों की आवाजाही हो चुकी है।
वक्त की रेखा पर अनुभव की तहरीर लिखने वाली हिना सच्चे मायने में आज आजमगढ़ की हिना बन चुकी हैं। देवारांचल की हिना, देवारांचल के झुरमुटों से विकास की सड़क पर आधी-आबादी को ले आने वाली, उन्हें प्रेरित करने वाली हिना…
खुबसूरत देहयष्टि और उससे भी खुबसूरत मन की इस मल्लिका ने समाज सेवा के क्षेत्र में श्री रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय जोकहरा को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई हैं। जोकहरा अब देवारांचल के लिए नहीं बल्कि जोकहरा पुस्तकालय की गतिविधियों और हिना देसाई के लिए जाना जाता है। यह पहचान हिना के दशकों की मेहनत और समर्पण से अर्जित पहचान है। जो अब आजमगढ़ की पहचान बन चुकी हैं। वह आजमगढ़ की आधी-आबादी की प्रखर अभिव्यक्ति हैं। उन्हें बीते दिन अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर राजभवन में सम्मानित किया गया। राज्यपाल के हाथों सम्मानित होना आधी आबादी ही नहीं बल्कि आजमगढ़ की पूरी आबादी का सम्मान है। शुभकामनाएं हिना देसाई जी..!
हिना कोई एक दिन में नहीं बनती, वह देवारांचलों की झुरमुटों से निकलती है…
ये बात है सन 2008 के अक्टूबर माह की जब हिना देसाई श्री रामानंद सरस्वती पुस्तकालय में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पहली बार आजमगढ़ के जोकहरा गाँव आयीं | उनके प्रवास के दूसरे ही दिन वंचित समुदाय की एक महिला रोते हुए पुस्तकालय पर आई | महिला को गाँव के दबंग पुरुष ने बुरी तरह मारा था | उसकी कहानी सुनकर हिना अपने आप को रोक न सकीं | वो उस महिला को अपने साथ लेकर उस व्यक्ति के घर गई | उन्होंने उस पुरुष और उसके घर वालों से इस अन्याय के बारे में बात की | शुरू में तो इस हिंसा को अपना अधिकार बताया लेकिन हिना के सतत प्रयास से बात उनकी समझ में आयी | उन्होंने अपनी गलती स्वीकारी और पीड़ित महिला से माफ़ी मांगते हुए भविष्य में हिंसा न करने की शपथ ली |
इस घटना ने मुंबई में जन्मी और शिक्षा पाई हिना का जीवन हमेशा के लिए बदल दिया | उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि हिंसा से पीड़ित के लिए कुछ कर सकती हैं | उन्हें दुःख के अंधकार से बाहर ला सकती हैं | और फिर एकाउंट्स कि पढाई की हुई गुजरात चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स की सेक्रेटरी रह चुकी हिना ने आजमगढ़ को अपना कार्यक्षेत्र बना लिया |
आजमगढ़ में काम शुरू करने पर हिना के सामने बहुत सी चुनौतियाँ आयीं | लोग उन्हें बाहरी मानते, कहते कि ये कुछ दिन के लिए घूमने आयी हैं और फिर चली जाएँगी | लेकिन हिना इन बातों से विचलित नहीं हुईं | वो संघर्ष के रास्ते पर मजबूती से आगे बढती गईं | उनके मजबूत इरादों ने यहाँ के पित्र सत्तात्मक सामंती सोच वाले समाज को अपनी सोच बदलने के लिए प्रेरित किया | वो लोग जो महिलाओं को कमजोर मानते थे उन्हें हेय दृष्टि से देखते थे वो अब उन्हें बराबरी का दर्जा देने कि बात करने लगे |
हिना मानती हैं कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उन्हें आत्मनिर्भर बनाना बहुत जरूरी है | इसलिए वो समय समय पर उनके लिए रोजगार परक प्रशिक्षण का आयोजन करती हैं | इन कार्यक्रमों में महिलाये बकरी पालन, झाड़ू निर्माण, अचार पापड़ बनाना और कंप्यूटर चलाना सीख कर आत्मनिर्भरता के रस्ते पर आगे बढ़ रहीं हैं |
हिना देसाई की इस मुहिम से आज़मगढ़ और आस पास के जनपदों की हजारों महिलाएं हिंसा से मुक्ति पाकर सम्मान और गरिमायुक्त जीवन जी रहीं हैं |
हिना कहती हैं जब हिंसा से पीड़ित महिला हमारे पास आती है तो वो एकदम अकेली होती है | उसका परिवार और समाज उसे समर्थन नहीं देता | हम उसकी बात सुनते हैं उसे संबल प्रदान करके कानूनी सहायता प्रदान करते हैं | धीरे धीरे महिला के अन्दर छुपी ताकत सामने आती है और वो अपने ऊपर हो रहे अन्याय के सामने चट्टान बनकर खड़ी हो जाती है | इन क्षणों में उस महिला के चेहरे पर छलकती आत्मविश्वास भरी मुस्कान मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है |