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मिलावट का खेल: मिठाई-नमकीन पर बिखेर रहे मिलावट की चमक, झेल रहा लिवर- ध्यान दें; नहीं तो बन जाएंगे मरीज

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गोरखपुर। आयुर्वेद में पाचन क्रिया बेहतर बनाने के लिए सुबह खाली पेट जलेबी खाने की सलाह दी जाती है, लेकिन धंधेबाजों ने इसे भी नहीं छोड़ा है। जलेबी को रंगीन बनाने के लिए दुकानदार उसमें सिंथेटिक रंग डाल रहे हैं। इससे सेहतमंद जलेबी भी नुकसानदेह बन रही है।

यही हाल अन्य खाने-पीने की वस्तुओं का भी है। मिठाई और नमकीन में रंगों के इस अत्यधिक प्रयोग का सीधा असर लिवर पर पड़ रहा है। गैस्ट्रो विशेषज्ञों के यहां लिवर संक्रमण के जो मरीज आ रहे हैं, उनमें सबसे अधिक वही हैं, जो हर दिन दुकानों से कुछ न कुछ खाते रहते हैं।

बाजार में मिलावट तो है ही, सिंथेटिक रंग भी मिलाए जा रहे हैं। जबकि, दाल और सब्जी समेत अन्य भोज्य पदार्थों में किसी भी प्रकार का रंग मिलाना प्रतिबंधित है।

सहायक आयुक्त खाद्य सुरक्षा डॉ. सुधीर कुमार सिंह का कहना है कि मिठाई और नमकीन में 1000 ग्राम (एक किलोग्राम) में अधिकतम 100 मिलीग्राम तक केवल फूड कलर मिलाने की अनुमति है, लेकिन दुकानदार मिठाई-नमकीन को आकर्षक बनाकर रेट बढ़ाने के लिए उसमें प्रति किलोग्राम 10 ग्राम से अधिक सिंथेटिक रंग मिला रहे हैं।

दुकानों पर बिकने वाली मिठाई और नमकीन के अलावा पैकेटबंद नमकीन, चिप्स, भुजिया आदि को बनाने में भी रंगों का प्रयोग किया जाता है। मिठाई के दुकानदार सुरेश गुप्ता बताते हैं कि छेना से बनी मिठाइयों को अलग-अलग नाम देने के लिए उनमें रंग डालना ही पड़ता है। अगर बिना रंग के बनाया जाए तो सभी मिठाइयां हल्का सफेद या हल्का भूरा ही दिखेंगी। चमक नहीं होने की वजह से इसकी बिक्री पर असर पड़ेगा।

सबसे अधिक रंगों का इस्तेमाल नमकीन बनाने में होता है। मिठाई की छोटी दुकान से लेकर नमकीन पैकिंग करने वाली फैक्टरी तक में प्रतिबंधित रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। किराना दुकानदार संजय ने बताया कि अधिकांश नमकीन बनाने में मैदा व बेसन का इस्तेमाल होता है। इससे बनी नमकीन हल्के भूरे रंग की होती है। पैकेट बंद नमकीन में सबसे अधिक कलर का प्रयोग होता है। इस कलर से ही नमकीन में चमक दिखती है।

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