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निजीकरण के विरोध में 29 मई को पूरे प्रदेश में लामबंद होंगे बिजलीकर्मी

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लखनऊ। निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मियों ने सभी जिलों एवं परियोजनाओँ पर तीन घंटे का कार्य बहिष्कार कर विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान 29 मई से पूर्ण कार्य बहिष्कार को लेकर भी रणनीति बनाई गई।

प्रदर्शन के दौरान बिजली कर्मियों ने आरोप लगाया कि पावर कार्पोरेशन प्रबंधन निजीकरण की जिद पर अड़ा हुआ है। हठवादी रवैया अपना कर आंदोलन को बढावा दे रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि निजीकरण की आड़ में अरबों रुपये के घोटाले की तैयारी है। निगमों की अरबों रुपये की संपत्तियों का मूल्यांकन किए बगैर निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी चल रही है। संघर्ष समिति की हड़ताल करने की अभी कोई नोटिस नहीं है। वे सिर्फ अपनी तैयारी कर रहे हैं। इसके बाद भी मुख्य सचिव, कार्पोरेशन के अध्यक्ष शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को पत्र भेज कर गुमराह कर रहे हैं। जिला अधिकारियों द्वारा हड़ताल से निपटने की तैयारी के आदेश जारी किए जा रहे हैं, जिससे अनावश्यक तौर पर ऊर्जा निगमों में औद्योगिक अशांति का वातावरण बन रहा है। उन्होंने कहा कि ट्रांजेक्शन एडवाइजर की नियुक्ति रद्द कर दी जाए और निजीकरण का निर्णय वापस ले लिया जाए तो बिजली कर्मी आंदोलन नहीं करेंगे।

संघर्ष समिति ने यह भी आरोप लगाया कि अमेरिका में जुर्माना झेलने और झूठा शपथ पत्र देने वाली ट्रांजेक्शन एडवाइजर कंपनी ग्रांट थार्नटन पर कार्रवाई करने के बजाय प्रबंधन संविदा कर्मियों की छंटनी में जुटा है। टेंडर मूल्यांकन समिति के अध्यक्ष के रूप में निदेशक वित्त निधि नारंग का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। नए निदेशक वित्त पुरुषोत्तम अग्रवाल पर इस कदर दवाब बनाया गया कि उन्होंने कार्यभार ग्रहण करने से मना कर दिया है। अब निधि नारंग को दूसरी बार कार्य विस्तार देने की तैयारी है।

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि निजीकरण के लिए तैयार किए गए मसौदे की संवैधानिकता की जांच कराई जाए। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि भारत सरकार द्वारा बनाया गया स्टैंडर्ड बिडिंग ड्राफ्ट 2025 लाकर उस पर निजीकरण का मसौदा तैयार कर रहा है। उसमें विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17 प्रावधानित ही नहीं है। उन्होंने कहा कि पावर कॉरपोरेशन विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 131 के तहत बिजली कंपनियों का निजीकरण की सोच रहा है तो यह गलत है। यह धारा केवल एक बार प्रयोग में लाने के लिए बनाई गई है। इसके जरिए बिजली कंपनियों का गठन हो चुका है। ऐसे में पावर कार्पोरेशन को निविदा प्रपत्र के लिए नए सिरे से विचार करना होगा।

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