Latest News

The News Complete in Website

उर्दू और हिंदी एक ही व्यक्ति की दो आंखों के समान हैं-प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा

1 min read

Oplus_131072

14 सितंबर को केवल राजभाषा हिंदी दिवस नहीं, भारतीय भाषा दिवस के रूप में भी मनाना चाहिए।

प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा को सम्मानित करते कुलपति

 

कुलबुर्गी।हिंदी विभाग द्वारा खाजा बंदानवाज़ विश्वविद्यालय, कलबुर्गी में 17 सितंबर 2024 को राजभाषा हिंदी पखवाड़े का समापन समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम के आयोजक हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ देशमुख अफशां बेगम और सहायक आचार्य डॉ मिलन बिश्नोई थे।

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा को आमंत्रित किया गया।
अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि 14 सितंबर को केवल राजभाषा हिंदी दिवस के रूप में ही नहीं मनाना चाहिए बल्कि इसे भारतीय भाषा दिवस के रूप में भी मनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदी भारत की सबसे बड़ी भाषा है और अन्य भारतीय भाषाएँ छोटी हैं, ऐसा भ्रम नहीं रखना, क्योंकि सभी भाषाएँ सहोदरी हैं। उर्दू और हिंदी एक ही व्यक्ति की दो आंखों के समान हैं।

हालांकि संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया, फिर भी हम हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते हैं। इसके ऐतिहासिक कारणों को उजागर करते हुए उन्होंने 1857 की क्रांति के साथ अन्य कई कारणों की भी व्याख्या की।
उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय भाषाओं के बीच छोटे-बड़े का भेदभाव और नफरत की भावना के पीछे अंग्रेजी मानसिकता का भी हाथ है। कार्ल मैकाले की शिक्षा नीति में अंग्रेजी के बीज बोए गए । इसके पीछे भारतीय भाषा और ज्ञान परंपरा की रीढ़ को तोड़ना था और इसका असर आज भी देखा जा सकता है। हिंदी के राजभाषा, जनभाषा और विश्वभाषा बनने के सफर को समझाते हुए उन्होंने कहा कि अगर हमें भारतीयता या हिंदुस्तानी संस्कृति को बचाना है, तो हमें हिंदी और भारतीय भाषाओं में संवाद जरूर करना चाहिए। उदाहरण स्वरुप कहा कि अस्सलाम वालेकुम सलाम का आप अंग्रेजी में क्या जवाब दोगे? यानि हिंदी हमारी तहज़ीब और तमीज की भाषा भी है।

विशिष्ट अतिथि के रूप में माननीय कुलपति प्रोफेसर अली रज़ा मूसवी उपस्थित रहे। माननीय कुलपति ने अपने संबोधन में कहा कि हिंदी को बाधा नहीं, बल्कि एक पुल के रूप में देखा जाना चाहिए। हिंदी और हिंदुस्तानी भाषाओं को साथ मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने हमारे विश्वविद्यालय स्तर पर हिंदी और उर्दू विभाग को मनोविज्ञान,कला तथा विज्ञान वर्ग के साथ जुड़कर काम करने करने की सलाह भी दी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संकाय अध्यक्ष (डीन) प्रोफेसर निशात आरिफ हुसैनी ने की। उन्होंने कहा अब समय जैंनेटिक्स भाषाओं के माध्यम नये आयामों से शोध करने का है। अंग्रेजियत में हम इतने डूब गए कि लेकिन हम अपनी भाषाओं के माध्यम से कौशल विकास कर सकते हैं और हिंदी को हिंदुस्तान की सबसे सक्रिय भाषा बताया।

अतः विश्वविद्यालय में दो सप्ताह तक विद्यार्थियों और संकाय/फैकल्टी (भाषा, कला, शिक्षा, वाणिज्य, विधि, विज्ञान, मेडिकल तथा इंजीनियरिंग) के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया था। सभी विजेता प्रतिभागियों अर्थात विद्यार्थियों और आचार्यों को पुरस्कृत किया गया।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *