क्या ट्रेनी डॉक्टर से हैवानियत पश्चिम बंगाल की राजनीति को बदलने वाली साबित होगी ?
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अशोक भाटिया , मुंबई
कोलकाता में डॉक्टर से रेप का मामला अब राजनीतिक रंग में बदलता जा रहा है। विपक्ष के विरोध और प्रदर्शन के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा दावा कर दिया है। बंगाल की मुख्यमंत्री का कहना है कि शेख हसीना की तरह ही उनके खिलाफ भी साजिश हो रही है। उनके अनुसार प्रदर्शन के नाम पर बांग्लादेश की तरह ही मेरी सरकार को अस्थिर करने का प्रयास किया जा रहा है।ममता बनर्जी के इस दावे के बीच सवाल उठता है कि कोलकाता रेप केस में बंगाल के मुख्यमंत्री को साजिश और सरकार गिराने के षड्यंत्र का डर क्यों सता रहा है?
बंगाल में कोलकाता रेप केस के बाद सबसे ज्यादा मुखर विपक्ष ही है। वाम मोर्चा का छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया पूरे आंदोलन को लीड कर रहा है। भाजपा भी दिल्ली से लेकर कोलकाता तक एक्टिव है। शुक्रवार को भाजपा ने चक्का जाम तो सीपीएम ने बंद का ऐलान किया । राजनीतिक तौर पर इन दलों की कोशिश बंगाल में ममता की घेराबंदी है। राजनीतिक दलों के अलावा बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस भी इस केस में एक्टिव हैं। बोस गुरुवार को अस्पताल भी पहुंचे थे। उन्होंने यहां पर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि इस देश मे मां-बहनों की पूजा होती है, लेकिन बंगाल में नहीं होती है। बंगाल में महिलाओं के लिए रात नहीं है।
यह पहली बार है, जब बंगाल में किसी भी मुद्दे पर विपक्ष के सभी दल ममता बनर्जी के खिलाफ मुखर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से इसे जघन्य अपराध और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की बात कही है। राहुल गांधी पहले ही प्रशासन पर आरोपियों को बचाने का आरोप लगा चुके हैं।सीपीएम भी ममता के खिलाफ मुखर ही है। चूंकि मामला महिलाओं से जुड़ा है, इसलिए ममता बनर्जी की इसकी राजनीतिक अहमियत समझती हैं। बंगाल में महिलाएं हमेशा से राजनीति के केंद्र में रही हैं और महिलाएं ममता की पार्टी का कोर वोटर्स मानी जाती हैं। 2012 में दिल्ली गैंगरेप के इसी तरह का उबाल राजधानी में था, जिसका असर 2013 के चुनाव में देखा गया। कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार बुरी तरह हार गई।
बंगाल में सरकार गिरने का डर ममता को इसलिए भी सता रहा है, क्योंकि इस घटना के बाद राज्य के कई हिस्सों में प्रदर्शन शुरू हो गया है। गुरुवार रात जिस तरह से कोलकाता में आरजी कॉलेज के बाहर प्रदर्शन हुआ, उससे इंटेलिजेंस और पुलिस की भी भूमिका पर सवाल उठ रहा है।ममता सरकार के 13 साल में शायद पहली बार सत्ता विरोधी माहौल बनता दिख रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या ट्रेनी डॉक्टर से हैवानियत पश्चिम बंगाल की राजनीति को बदलने वाली साबित होगा, क्योंकि कोलकाता में डॉक्टर से रेप और मर्डर केस पर ममता बनर्जी चौतरफा घिर गई हैं। एक तरफ जहां विरोधी प्रशासन की लापरवाही को मुद्दा बनाकर उनसे इस्तीफा मांग रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनकी पार्टी के नेता और सहयोगी भी ममता सरकार पर हमलावर हैं।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी मुद्दे पर बंगाल सरकार की इतनी फजीहत हो रही है। पहले भी संदेशखाली का मामला हो या फिर आसनसोल हिंसा। ममता बनर्जी बैकफुट पर रह चुकी हैं। लेकिन इन फजीहतों के बावजूद ममता बनर्जी के सियासी कद पर कोई फर्क नहीं आया। उनकी पार्टी इन इलाकों में लगातार जीत दर्ज करती रही। ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार ममता कोलकाता रेप केस के आरोपों से राजनीतिक नुकसान को रोक पाएंगी?
कहा जाता है कि ममता बनर्जी जब भी सियासी मुश्किल में घिरती हैं तो पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरती हैं। लेकिन इस बार उनके सामने चुनौती बहुत कड़ी है। ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी की तुलना दिल्ली में निर्भया केस से की जा रही है। लेकिन पश्चिम बंगाल के लोगों को इस संवेदनशील घटना पर ममता सरकार का रवैया हैरान कर रहा है।लोग भड़के हुए हैं। पश्चिम बंगाल की पुलिस पर आरोप है कि उसने इतने वीभत्स कांड में भी टाल मटोल वाला रवैया अपनाया जिसकी वजह से सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंपना पड़ा। मगर सीबीआई की जांच के पहले ही दिन आधी रात को हंगामा मच गया। आधी रात को हजारों की संख्या में लोगों ने मेडिकल कॉलेज पर हमला कर दिया।
सवाल उठे कि रात के अंधेरे में हजारों की भीड़ कहां से आ गई? क्या ये हमला सबूतों को मिटाने की साजिश थी? क्या सी बी आई जांच में कुछ बड़ा सच सामने आने वाला था? इधर ममता बनर्जी ने कहा है कि ये हमला भाजपा और वामदलों ने बाहरी लोगों से कराया है।सवाल उठ रहे हैं कि क्या जांच में लापरवाही के आरोपों के बीच ममता बनर्जी का केस को सीबीआई को सौंपना क्या उनकी घटती ताकत का संकेत है? ममता बनर्जी ने लगातार CBI-ED जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों का विरोध किया और अक्सर उन्हें विपक्षियों को परेशान करने का मोदी सरकार का औजार बताया। उंगलियां सीधे कोलकाता पुलिस पर उठ रही हैं। भाजपा के साथ-साथ, अस्पताल के बाहर प्रदर्शन कर रहे छात्र भी कह रहे हैं कि पुलिस ने उपद्रवियों को रोकने की कोशिश नहीं की। कोलकाता में जो कुछ हो रहा है। उससे तृणमूल कांग्रेस को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। टीएमसी नेता शांतनु सेन के आरजी कर अस्पताल पहुंचने पर ‘गो बैक‘ के नारे लगे।
2011 में मुख्यमंत्री बनने के बाद ये शायद पहली बार है कि TMC प्रमुख को सार्वजनिक रूप से राज्य पुलिस बल की कमियों को स्वीकार करना पड़ा। सवाल ये है कि क्या इसकी वजह कोलकाता रेप और मर्डर केस को लेकर पश्चिम बंगाल और देश का गुस्सा है, जिसे जानकार बंगाल की राजनीति का नया सिंगूर कांड मान रहे हैं।अस्पताल प्रशासन यानी तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष, वो संदीप घोष जिन पर शुरुआत से ही मामले में भटकाने के आरोप लगते रहे। उनका इस्तीफा अस्वीकार करके ममता सरकार ने उन्हें दूसरे कॉलेज का प्रिंसिपल क्यों बना दिया? लेकिन इससे भी ज्यादा तीखे सवाल टीएमसी नेताओं की चुप्पी पर उठे।
कोलकाता रेप केस में मचे बवाल के बीच सवाल उठ रहा है कि क्या विपक्ष को इसका फायदा होगा? इस सवाल को दो तरह से समझ सकते है । पहला कोलकाता रेप केस का मामला अब सीबीआई के पास है। सीबीआई केंद्र सरकार के अधीन है और केंद्र मे एनडीए की सरकार है। आने वाले वक्त में इस केस में सीबीआई की जांच से अगर कुछ ठोस निकलता है, तब तो भाजपा ममता बनर्जी की सरकार पर मुखर हो सकती है। अगर नहीं निकलता है तो ममता की पार्टी सीबीआई के जरिए उलटे भाजपा पर निशाना साधेगी।दूसरा बंगाल में वर्तमान में आंदोलन का नेतृत्व एसएफआई के पास है। राजनीतिक फायदा चुनाव के वक्त में मिलता है। बंगाल में अभी विधानसभा और पंचायत चुनाव में काफी वक्त है। एसएफआई जिस संगठन की छात्र इकाई है, उसका बंगाल में काफी कमजोर ऑर्गेनाइजेशन है। ऐसे में इस बात की संभावनाएं कम है कि एसएफआई इस केस में कोई फायदा ले ले।
सवाल यह भी उठता है कि क्या बंगाल का बांग्लादेश जैसा हाल संभव है? जैसा कि ममता आरोप लगाती है तो उसके उत्तर में कहा जा सकता है कि बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल में काफी फर्क है। बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश है, जबकि पश्चिम बंगाल भारत का एक राज्य भर है। बंगाल में अगर राजनीतिक स्थिरता जैसी स्थिति बनती है तो मुख्यमंत्री को हटाकर केंद्र अपने कब्जे में ले सकती है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद-356 में प्रावधान भी किया गया है।इसलिए हर राज्य में केंद्र अपने प्रतिनिधि के तौर पर राज्यपाल की नियुक्ति करता है। राज्यपाल का काम लॉ एंड ऑर्डर के साथ-साथ बाहरी तत्वों पर भी नजर रखना होता है, जिससे राज्य की स्थिति खराब न हो जाए। राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने पूरे मामले में प्रशासनिक विफलता का ही जिक्र किया है।ऐसे में कहा जा रहा है कि ममता जिस तरह से आशंका जता रही है, वो सिर्फ उनका राजनीतिक दांव है। ममता इस दांव के जरिए अपने कार्यकर्ताओं को सड़क पर लाना चाहती है, जिससे इस मसले पर राजनीतिक लड़ाई में बढ़त मिल सके।
2011 में मुख्यमंत्री बनने के बाद ये शायद पहली बार है कि TMC प्रमुख को सार्वजनिक रूप से राज्य पुलिस बल की कमियों को स्वीकार करना पड़ा। सवाल ये है कि क्या इसकी वजह कोलकाता रेप और मर्डर केस को लेकर पश्चिम बंगाल और देश का गुस्सा है, जिसे जानकार बंगाल की राजनीति का नया सिंगूर कांड मान रहे हैं।
अस्पताल प्रशासन यानी तत्कालीन प्रिंसिपल संदीप घोष, वो संदीप घोष जिन पर शुरुआत से ही मामले में भटकाने के आरोप लगते रहे। उनका इस्तीफा अस्वीकार करके ममता सरकार ने उन्हें दूसरे कॉलेज का प्रिंसिपल क्यों बना दिया? लेकिन इससे भी ज्यादा तीखे सवाल टीएमसी नेताओं की चुप्पी पर उठे।लोकसभा में TMC के 29 सांसद हैं जिसमें महुआ मोइत्रा, काकोली घोष और डोला सेन समेत 11 सांसद महिलाएं हैं। बावजूद इसके कोलकाता रेप और मर्डर केस में तृणमूल कांग्रेस की सांसद चुप रहीं। महुआ मोइत्रा जैसी मुखर सांसद को कोलकाता रेप और मर्डर केस पर पहली प्रतिक्रिया देने में 5 दिन लग गए जबकि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर महुआ मोइत्रा ने घंटे भर के अंदर ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मोदी सरकार को घेरा था।
10 अगस्त से महुआ मोइत्रा ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर 20 ट्वीट किए तो कोलकाला मर्डर केस पर सिर्फ एक ट्वीट, वो भी चौतरफा आलोचना के बाद। इस चुप्पी ने ममता सरकार पर विपक्ष के हमलों को खूब धार दी। रही सही कसर आरजी कर हॉस्पिटल में आधी रात को हुए हंगामे ने पूरी कर दी।ममता बनर्जी ने कहा कि 17 अगस्त को सभी ब्लॉकों में विरोध मार्च निकाला जाएगा। 18 अगस्त को सभी ब्लॉकों में प्रदर्शन होगा और 19 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन दोषियों को फांसी की सजा दिलाने की मांग को लेकर कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। लेकिन भाजपा ममता बनर्जी के इस्तीफे से कम मान रही है।