Latest News

The News Complete in Website

सरकारी नौकरी पक्की करने के लिए लड़ी चार दशक तक कानूनी लड़ाई

1 min read

नियमित होने के बाद फिर किया गया बर्खास्त

लखनऊ। सरकारी नौकरी सात अप्रैल 1984 को मिलने के बाद भी अरुण कुमार तिवारी को नौकरी पक्की करने के लिए चार दशक तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। कई बार सेवा से बाहर रहने और दोबारा सेवा में लिए जाने के बाद सेवानिवृत्ति के लाभ को भी पाने के लिए उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने अरुण तिवारी की याचिका पर सुनवाई के बाद मामले में छह अगस्त 2019 को एकल पीठ के आदेश और नौ मार्च 2010 को एसडीएम, पलिया, खीरी के आदेश को निरस्त करते हुए वादी की सेवा को मान्य किया।

अरुण को सात अप्रैल 1984 को राजस्व अमीन के पद पर नियुक्त किया गया। कई शिकायतों के बाद उसे 23 सितंबर 1985 को बर्खास्त कर दिया गया। इसके खिलाफ वादी ने याचिका दाखिल की। अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद 25 मई 2001 को बर्खास्तगी के आदेश पर रोक लगा दी लेकिन मामला अदालत में लंबित रहा। सुनवाई के दौरान लगातार अनुपस्थित रहने के कारण 12 अगस्त 2004 को अदालत ने मामले को निरस्त कर दिया।

अधिकारियों ने मामले के निरस्त होने के बाद वादी को फिर से बर्खास्त कर दिया। अधिकारियों का कहना था कि कोर्ट के स्टे आदेश के कारण उसे नौकरी में वापस लिया गया था, लेकिन मामला निरस्त होने के बाद स्टे ऑर्डर का औचित्य नहीं है। इस बीच 25 मई 2001 को वादी की सेवा का नियमतीकरण कर दिया गया। अधिकारियों ने इस तथ्य को संज्ञान में नहीं लिया।

मामले में फिर से याचिका दाखिल करने पर एकल पीठ ने आदेश दिया कि नौ मार्च 2010 को एसडीएम पलिया, खीरी का वादी के पक्ष में नौकरी बहाली के आदेश याचिका खारिज होने के बाद औचित्यहीन हो गया था। इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने विभाग द्वारा 2001 में वादी को नियमित करने के तथ्य का संज्ञान नहीं लिया।

मुख्य न्यायमूर्ति की खंडपीठ ने माना कि 2001 में सेवा का नियमतीकरण होने के बाद वर्ष 1985 के बर्खास्तगी के आदेश का औचित्य खत्म हो जाता है। अदालत ने एकल पीठ और एसडीएम के आदेश को निरस्त करते हुए वादी की सेवा मंजूरी की याचिका को मान लिया।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *