चाणक्य और हठ’योगी के रिश्तों के बीच जमीं बर्फ अब पिघलने लगी है!
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@ डा०अरविंद सिंह
सियासत के हठ’योगी’ और आधुनिक’चाणक्य’ के बीच क्या अब सुलह हो चुकी है। क्या इधर सियासत के दो विपरीत ध्रुवों के बीच कोई अलिखित समझौता सा हुआ है कि भाजपा की भविष्य की सियासत जो भी हो, मोदी के उत्तराधिकार को लेकर अब कोई टकराहट की स्थिति नहीं बनेगी। क्या संघ नें दोनों नेताओ के बीच कोई लक्ष्मण रेखा खींच दी है,जिसका अतिलंघन कोई भी नेता नहीं करेगा। योगी को उत्तर प्रदेश की सियासत में ही घेरकर उन्हें सियासत के वानप्रस्थ में पहुंचाने वाली चाणक्य की कथित टीम ने भी अब जैसे हाथ उठा लिया है। इसका ताजा उदाहरण अभी हाल फिलहाल में लखनऊ में 60 हजार पुलिस के जवानों के नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे देश के गृहमंत्री अमित शाह ने मंच से योगी की जम कर तारीफ की तो, योगी ने भी चाणक्य की तारीफों का पुल बांधा। दोनो नेताओं के बीच लंबे समय से चल रहें मन-मुटाव और रिश्तों के बीच जमीं बर्फ अब पिघलने लगी है। लगता है कि अब दोनों नेताओं ने भविष्य की सियासत को लेकर परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया है। इसके लिए जिम्मेदार बीते लोकसभा चुनाव के परिणाम और उम्मीद के मुताबिक सफलता का न मिलना भी है। ऐसे में संघ का प्रभाव और हस्तक्षेप बढ़ना ही था और वह एक बार फिर बढा। मोदी का अचानक से नागपुर पहुंचना और संघ से रिश्तों को सुधारने की क़वायद अनयास तो बिल्कुल नहीं था। इसके निहितार्थ को समझा जा सकता है।
हिन्दुत्व के फायर ब्रांड नेता के रूप में योगी आदित्यनाथ देशभर में एक ताकतवर सियासतदां बन चुके हैं। वे देश के सबसे बडे सूबे के लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बन कर इतिहास रच दिए हैं। उनकी छवि हिन्दुत्व के सबसे बडे राजनेता की बन चुकी है। ऐसे में चाणक्य तो चाणक्य ही हैं, पूरा देश जीतने का सपना भले देखें लेकिन घर की कलह के मायने और टकराहट के नतीजों को भलीभांति समझ रहें हैं।
